दण्डकारण्य में शिव को श्रीराम के प्रति मस्तक झुकाते देख सती का मोह तथा शिव की आज्ञा से उनके द्वारा श्रीराम की परीक्षा
गतांक से आगे............ उन शिव-दम्पत्ति ने वहां रहकर कौन सा चरित्र किया था?ब्रह्माजी ने कहा-मुने! तुम मुझसे सती और शिव के चरित्र का प्रेम से श्रवण करो। वे दोनों दम्पति वहां लौकिकी गति का आश्रय ले नित्य-निरन्तर क्रीड़ा किया करते थे। तदनन्तर महादेवी सती को अपने पति शंकर का वियोग प्राप्त हुआ, ऐसा कुछ श्रेष्ठ बुद्धि वाले विद्वानों का कथन है। परन्तु मुने! वास्तव में उन दोनों का परस्पर वियोग कैसे हो सकता है? क्योंकि वे दोनों वाणी और अर्थ के समान एक-दूसरे से सदा मिले-जुले हैं, शक्ति और शक्तिमान् हैं तथा चित्स्वरूप है। फिर भी उनमें लीला विषयक रूचि होने के कारण वह सब कुछ संघटित हो सकता है। सती और शिव यद्यपि ईश्वर हैं, तो भी लौकिक रीति का अनुसरण करके वे जो-जो लीलाएं करते हैं, वे सब सम्भव हैं। दक्षकन्या सती ने जब देखा कि मेरे पति ने मुझे त्याग दिया है, तब वे अपने पिता दक्ष के यक्ष में गयीं और वहां भगवान् शंकर का अनादर देख उन्होंने अपने शरीर को त्याग दिया। वे ही सती पुनः हिमायल के घर पार्वती के नाम से प्रकट हुई और बड़ी भारी तपस्या करके उन्होंने विवाह के द्वारा पुनः भगवान् शिव को प्राप्त कर लिया।
सूत जी कहते हैं-महर्षियों! ब्रह्माजी की यह बात सुनकर नारद जी ने विधाता से शिवा और शिव के महान् यश के विषय में इस प्रकार पूछा। नारद जी बोले-महभाग विष्णु शिष्य! विधात!
(शेष आगामी अंक में)