नभ से भी ऊँची तेरी उडान हो

डॉ. अ कीर्तिवर्ध, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।

जमीं का भी मगर तुम्हे भान हो।
थकने लगें जलने लगें जब 'पर' तेरे,
धरा तक उतरने की परों मे जान हो।
न अहंकार हो गगन छूने का कभी,
जमीं पर चलने में भी तेरी शान हो।
थे कल तक जो साथी धरा पर तेरे,
गगन में भी उन पर अभिमान हो।
टिकता बुलन्दियों पर वो शख्स सदा,
मानवता ही जब 'कीर्ति' पहचान हो।
मुजफ्फरनगर, उत्तर प्रदेश।

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