कन्याओं का संजा पर्व

ऋषिता मसानिया, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।

हमारे देश में वर्ष भर तीज-त्योहार मनाये जाते हैं। कुछ पुरुष प्रधान कुछ महिला प्रधान कुछ युवकों के लिए खास होते हैं। बालिकाओं के मेहंदी, महावर, चित्र और मांडने मांडे जाते हैं तो दिन की शुरुआत रांगोली से होती है। कुंवारी कन्याओं के लिए संजा पर्व 16 दिनों तक धूमधाम से मनाया जाता है। भादों माह की शुक्ल पूर्णिमा से पितृ मोक्ष अमावस्या तक श्राद्ध पक्ष में कुंआरी कन्याओं द्वारा मनाया जाने वाला संजा पर्व भी हमारी विरासत है, जो मध्यप्रदेश के मालवा-निमाड़, राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र आदि कई जगह विभिन्न नामों से प्रचलित है। संजा एक लोक पर्व है।
संजा एक लोक पर्व में दीवारों पर गोबर से लीपकर मांडी गई संजा बई को चमकीली पन्नियों से सजाया जाता है और सभी कन्याएं मिलकर उनकी आरती उतारती हैं। संजोत्सव पर्व के दौरान कन्याएं संजा माता की आराधना करती हैं, गीत गाकर वे अपने मन की बात कहती हैं। प्रारंभ में गोबर से मांडना बनाकर उस पर रंगबिरंगे पेपर व फूल से सजाती हैं, इसे किलाकोट कहते हैं। सूर्यास्त के समय कन्याएं एक जगह एकत्रित होती हैं और फिर घर-घर जाकर संजा माता का पूजन करती हैं। 
पहले दिन पांच पांचे, दूसरे दिन बीजोरा, तीसरे दिन तिजोरा, चौथे दिन बजोट, पांचवें दिन कुंवारा-कुंवारी, छठे दिन छबड़ी, सातवें दिन सातिया (स्वस्तिक), आठवें दिन आठ पखुड़ी का फूल, नौवें दिन डोकरा-डोकरी, दसवें दिन बंदर की थैली, ग्यारहवें दिन केल (केले का पेड़), बारहवें दिन से पूरा किलाकोट बनाना शुरू कर देते हैं, जिसे नीचे की ओर से खुला रखा जाता है। उत्तम वर की कामना के लिए कन्याएं संजोत्सव पर्व मनाती हैं, इससे कन्याएं पारंपरिक मांडना बनाना सिखाती हैं, किंतु अब कन्याएं मांडने की जगह रेडीमेड किलाकोट का भी पूजन करती हैं।
इसमें जो गीत गाए जाते हैं, उनकी बानगी इस प्रकार है :-
संझा तू थारा घर जा कि थारी मां
मारेगी कि कूटेगी
चांद गयो गुजरात हिरणी का बड़ा-बड़ा दांत,
कि छोरा-छोरी डरपेगा भई डरपेगा।' 
'म्हारा अंगना में मेंदी को झाड़,
दो-दो पत्ती चुनती थी।
गाय को खिलाती थी, गाय ने दिया दूध,
दूध की बनाई खीर 
खीर खिलाई संझा को, संझा ने दिया भाई,
भाई की हुई सगाई, सगाई से आई भाभी,
भाभी को हुई लड़की, लड़की ने मांडी संझा' 
'संझा सहेली बाजार में खेले, बाजार में रमे
वा किसकी बेटी व खाय-खाजा रोटी वा पेरे माणक मोती,
ठकराणी चाल चाले, मराठी बोली बोले,
संझा हेड़ो, संझा ना माथे बेड़ो

पंचवटी धाम कालोनी छावनी नाका आगर (मालवा) मध्यप्रदेश
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