डॉ. अ कीर्तिवर्धन, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
ताउम्र निभाता रहा फर्ज,खुद की खातिर कभी जिया ना,
सुकुन से बैठकर नहीं खायी रोटी,
सुकुन से बैठकर नहीं खायी रोटी,
दो घूंट पानी पिया ना।
रात दिन एक कर दिया था,
रात दिन एक कर दिया था,
परिवार की खुशी के वास्ते,
आरोप लगता है कर्तव्य था,
आरोप लगता है कर्तव्य था,
अहसान कुछ भी किया ना।
जो कुछ कमाया,
जो कुछ कमाया,
दे दिया सब परिवार को,
खुश रहें बच्चे,
खुश रहें बच्चे,
प्राथमिकता सदा विचार को।
दुर्भाग्य इस दौर का,
दुर्भाग्य इस दौर का,
समाज अर्थ प्रधान बना,
ठुकराने लगे हैं बच्चे अब,
ठुकराने लगे हैं बच्चे अब,
बुजूर्गों के प्यार को।
मुजफ्फरनगर, उत्तर प्रदेश।