आर्थिक स्वतंत्रता पाने के लिये
महिलाओं ने
आज रिश्तों को बेमानी कर दिया है
पति का घर इस शहर
पत्नी का उस नगर हो गया है।
पैसों की खातिर पति पत्नी
शादी होते ही अलग हो गये,
माँ बाप, भाई बहन सब
पैसों की चमक में
कहीँ खो गये हैं।
आर्थिक स्वतंत्रता ने
नारी को इस कदर उलझा डाला
हर समस्या का समाधान उसने
बस पैसे को बना डाला।
आज
विश्वास की नींव
इतनी खोखली हो गयी है
कि नवयौवना
अपना वर्तमान नही
भविष्य खोजती है।
अगर कुछ हो गया मेरे पति को
क्या मेरा होगा
इस विषय पर
शादी से पहले ही
वह सोचती है।
पति पत्नी
जो होते थे पूरक एक दूसरे के
सुख दुख होते थे
साझे सदा के लिये
आज अधुरे हो गये हैं
उनके प्यार भरे अंतरंग क्षण
तन्हाईयों में
कहीं खो गये हैं।
मुजफ्फरनगर, उत्तर प्रदेश।