हिन्दी रस की खान



डॉ. दशरथ मसानिया,  शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।

हिन्दी रस की  खान है , हिन्दी सबका मान।
सकल विश्व में अलग है ,भाषा की पहिचान।।१
हिन्दी मन रहते सदा ,वात्सल भक्ति श्रृंगार।
उद्गम है आह्लाद की ,करुणा की आगार।।२
हिन्दी आँगन में खिले ,विविध भाँति बहु फूल।
संस्कृत मां से जनम हुआ, अन्य सभी की मूल।।३
हरिश्चंद्र तो कह गये,राखो इसका मान। 
पंत निराला मैथिली, मीरा अरु रसखान।।४
तुलसी सूर कबीर ने, कीना है सिंगार।
देवी प्रेम प्रसाद  का , अद्भुत है  संसार।।५
सबको देती है  सदा , बहुत मान सम्मान ।
नित प्रति शीश झुकाइए , हिन्दी मातु समान।।
23, गवलीपुरा आगर, (मालवा) मध्यप्रदेश

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