गौरव सिंघल, सहारनपुर। सहारनपुर जिले में गायों में पिछले एक पखवाड़े से लंपी त्वचा रोग नामक संक्रामक वायरल फैला हुआ है। जिसका संक्रमण खून चूसने वाले कीड़ों, मक्खियों और मच्छरों से होता है। दूषित गाय से सीधे संपर्क में आने पर भी यह रोग फैलता है। सहारनपुर जिले में इस रोग से 15 से ज्यादा गायों की मौत हो चुकी है। यह सरकारी आंकड़ा है। इसके अलावा भी गायों के मरने की खबरें हैं। जिले के मुख्य पशु चिकित्साधिकारी डा. राजीव सक्सेना ने आज बताया कि इस बीमारी की रोकथाम के लिए कंट्रोल रूम बनाया गया है। जिलाधिकारी अखिलेश सिंह ने पशु पैठ लगाने और उनकी खरीद-फरोख्त पर रोक लगा दी है। गायों में फैली इस भयावह बीमारी के चलते पशु पालन विभाग के निदेशक इंद्रमणि ने सहारनपुर का दौरा किया और जिलाधिकारी के साथ बैठक की। बैठक में ऐसी कार्य योजना तैयार की गई कि जिससे इस संक्रामक बीमारी को ज्यादा फैलने से रोका जा सके।
बैठक में सीडीओ विजय कुमार, एडीएम रजनीश कुमार मिश्र, संयुक्त निदेशक डा. विजय सिंह, अपर निदेशक पशु पालन डा. आनंद कुमार और सीएमओ डा. संजीव मांगलिक उपस्थित रहे। मुख्य पशु चिकित्साधिकारी डा. राजीव सक्सेना ने बताया कि सहारनपुर जिले में 70 हजार दूध देने वाली गाए हैं और दो लाख 25 हजार दूध देने वाली भैंसे हैं। उन्होंने कहा कि सहारनपुर में इस वायरस के प्रकोप की तीव्रता कम हुई है। हालांकि इस रोग की कोई दवाई इत्यादि अभी नहीं है, लेकिन उससे होने वाले बुखार और अन्य लक्षणों का उपचार किया जा रहा है। जिले में 1900 से ज्यादा गाएं इस रोग से पीडि़त हैं। दूध का उत्पादन 20 फीसद तक घट गया है। पशु पालन विभाग ने पशु पालकों को निर्देश दिए हैं कि इस रोग को फैलने से रोकने के लिए 25 लीटर पानी में एक मुट्ठी नीम की पत्ती का पेस्ट मिलाने और सौ ग्राम फिटकरी मिलाकर रोकग्रस्त पशु को नहलाने का काम किया जाए। इस रोग में पशुओं के मुंह पर सूजन और बुखार आ जाता है। साथ ही त्वचा पर गांठें पड़ जाती हैं। पशु पालन विभाग के अधिकारी संजय चतुर्वेदी ने बताया कि गंगोह ब्लाक में 62 गांवों में यह बीमारी फैली थी, लेकिन अब केवल 15 गांवों में रह गई है।
डा. सक्सेना ने बताया कि रोगग्रस्त गायों को आंवला, अश्वगंधा, गिलोय एवं मुलेठी में से किसी एक को 20 ग्राम की मात्रा में गुड़ में मिलाकर सुबह-शाम लड्डू में मिलाकर खिलाया जाए। तुलसी के पत्ते एक मुट्ठी, दालचीनी पांच ग्राम, पांच ग्राम सोंठ, दस दाने काली मिर्च गुड़ में मिलाकर सुबह-शाम धुआं किया जाएं। जिलाधिकारी अखिलेश सिंह ने बताया कि यह रोग मनुष्यों में नहीं फैलता है। इसलिए चिकित्सकों और पशु पालकों को रोगग्रस्त पशुओं की चिकित्सा और सेवा करने से नहीं डरना चाहिए। डा. सक्सेना ने बताया कि पशुओं के चिकन-पाक्स जैसी यह बीमारी पहली बार सामने आई है। राजस्थान में सबसे ज्यादा प्रकोप था। 23 प्रदेशों में यह बीमारी फैली हुई है। डा. सक्सेना ने कहा कि यह संक्रमण भैंसों में भी हो सकता है। लेकिन वह अभी इससे सुरक्षित हैं।