विश्वशांति के संदेश वाहक थे गुरु नानक देव


 

मुकेश कुमार ऋषि वर्मा, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र। 

जब समाज में घोर आडंबर, अंधविश्वास, झूठें कर्मकांडों का बोलबाला बढ़ जाता है और धर्म की हानि होने लगती है, तब इस संसार में संत अवतरित होते हैं । मानव के भीतर से मानवता मर जाती है और इंसान इंसान से नफरत करने लगता है, तब संत अज्ञानी मानव को राह दिखाते हैं । ऐसे ही एक संत अखण्ड भारत में अवतरित हुए, जिनको संसार ने श्री गुरु नानक देव जी के नाम से जाना - माना और पहचाना ।नानक साहिब जी का जन्म 1469 ई. को राय भोये की तलवंडी (ननकाना साहिब) में हुआ था । आपके पिता का नाम मेहता कल्याण दास व माता का नाम तृप्ता जी था । करतारपुर में 22 सितंबर 1539 ई. को जोति जोत (स्वर्गवासी) हुए । श्री गुरु नानक देव जी कहते थे कि, ‘धर्म तो पंख लगा कर उड़ गया, शर्म व धर्म का डर दूर हो गया, झूठ फल फूल रहा है ।’ गुरु नानक देव जी ने देखा कि विभिन्न धर्म-पंत वाले एक दूसरे से लड़ रहे हैं । एक दूसरे को मार काट रहे हैं । लोग न गीता पढ़ते हैं, न बाईबल, न कुरान । इंसान जानवर बन गए हैं । गुरु नानक देव जी बचपन से ही आम बच्चों से अलग थे । आप शुरू से ही संतोषी व विचारवान वृत्ति वाले थे । आप किसी जरूरतमंद की जरूरत पूरी करने के लिए हमेशा तत्पर रहते और ऐसा करके अत्यंत प्रसन्नता का अनुभव करते । आप श्री ने एक बार अपने अध्यापक को बोला, ‘पंडित तू स्वयं क्या पढ़ा है जो मुझे पढ़ाता है ।’ गुरु नानक देव बचपन से ही अध्यात्म की बातें करते थे और अध्यात्म में घंटों लीन रहते थे । गुरु नानक देव जी ने कई भाषाओं व धर्म की शिक्षा प्राप्त की । गुरु नानक देव (1469 - 1539 ई.) सिख धर्म के प्रथम गुरु के जीवन को जन्म साखियों के वैज्ञानिक अध्ययन के आधार पर मुख्यत: तीन भागों में बांटा गया है । पहला भाग - 1469 - 1497 ई. अर्थात् 28 साल का घरेलू जीवन । दूसरा भाग - 1497-1521 ई. अर्थात् 24 साल का उदासी जीवन । तीसरा भाग - 1521-1539 ई. अर्थात् 18 साल का करतारपुर का संगत जीवन । गुरु नानक देव जी ने अपने जीवन के लगभग दो दशक हजारों मील पैदल यात्राओं में गुजार दिए थे । उनकी यात्राओं को उदासियों के नाम से जाना गया । विश्वसनीय स्रोतों के अनुसार गुरु साहिब जी की उदासियों को मुख्यत: चार भागों में बांटा गया है - प्रथम उदासी - (1497 से 1509 ई. तक) (पूर्व दिशा की ओर) द्वितीय उदासी -(1510 से 1515 ई. तक) (दक्षिण दिशा की ओर) तृतीय उदासी -(1515 से 1518 ई. तक)(उत्तर दिशा की ओर) चतुर्थ उदासी - (1518 से 1521 ई. तक) (पश्चिम दिशा की ओर) गुरु नानक देव जी अपनी दिनचर्या में एक दिन आप अमृत समय (प्रात: काल - ब्रह्ममुहूर्त) में वेईं नदी में स्नान करने गए । आप जी स्नान के समय परमात्मा से एक सुर हो गए व अनुभव किया कि आप सर्वशक्तिमान परमात्मा के सम्मुख हैं । जीवन उद्देश्य की पूर्ति के लिए अकाल पुरुख से आप जी को आशीर्वाद प्राप्त हुआ । आप तीन दिन बाद वेईं नदी से बाहर आए और आपने पहला उपदेश किया, ‘न हम हिंदू न मुसलमान ।’ इस महावाक्य ने लोगों के अंदर उत्तेजना पैदा कर दी । और इसी दिन से सिक्ख धर्म के विचारों का शुभ मुहूर्त बना । गुरु नानक देव जी का जीवन अद्भुत घटनाओं से भरा पड़ा है । “ पाताला पाताल लख आगासा आगास ” अर्थात् - लाखों पाताल लाखों आकाश हैं ।जिसकी खोज हमारे वैज्ञानिक कर रहे हैं । गुरु नानक देव जी सैकड़ों साल पहले अपनी बाणी में बता चुके हैं । “ कुदरति पउणु पाणी बैसंतरु कुदरति धरती खाकु । सभ तेरी कुदरति तूं कादिरु करता पाकी नाई पाकु ।‌।” गुरु नानक देव जी ने अपने अनुयायियों को प्रमुख रूप से दस शिक्षाएं दीं- 1. ईश्वर एक है । 2. सदैव एक ही ईश्वर की उपासना करो । 3. ईश्वर सब जगह और प्राणी मात्र में मौजूद है । 4. ईश्वर की भक्ति करने वालों को किसी का भय नहीं रहता है । 5. ईमानदारी और मेहनत करके पेट भरना चाहिए । 6. बुरा कार्य करने के बारे में न सोचें और न किसी को सताएं । 7. सदैव प्रसन्न रहना चाहिए, ईश्वर से क्षमा मांगते रहना चाहिए, 8. मेहनत व ईमान की कमाई से ही जरूरतमंदों को दान देना चाहिए । 9. सभी स्त्री-पुरुष बराबर हैं, किसी भी तरह का भेदभाव ठीक नहीं । 10. भोजन शरीर को जिंदा रखने के लिए जरूरी है परंतु लोभ-लालच में संग्रहित न करें । गुरु नानक देव जी ने गुरु को महत्व दिया है । उन्होंने कहा है कि अगर मोक्ष तक पहुंचना है तो गुरु की सेवा करो । यह सरल मार्ग है, इससे सहज ही मोक्ष यानी कि ईश्वर की प्राप्ति संभव है । गुरु नानक देव जी एक सच्चे दार्शनिक, योगी, गृहस्थ, धर्म सुधारक, समाज सुधारक, कवि, देशभक्त, विश्व बंधु थे । उनके द्वारा स्थापित सिक्ख पंथ आज संसार भर में मानव सेवा के लिए प्रसिद्ध है । गुरु ग्रंथ साहिब वह पावन पवित्र ग्रंथ है, जिसकी शिक्षाओं में विश्व शांति की महक हमेशा विखरती रहती है । गुरु नानक देव जी ने गुरु ग्रंथ साहिब में वह अमृत छलकाया है, जिसके पान से संसार में चारों ओर एक समानता की मृदुल हवा चल उठेगी । संदर्भ - 1. विकिपीडिया व गूगल सर्च इंजन । 2. सिक्ख धर्म अध्ययन (प्राथमिक जानकारी भाग-1) संपादक- जसबीर सिंघ साबर (डा.) । 3. आलेख - बनीता रानी (शीराजा -हिंदी पत्रिका, अंक अप्रैल-मई 2020, जम्मू एंड कश्मीर) संपादक- मुनीर उल इस्लाम । 

ग्राम रिहावली, पोस्ट तारौली गुर्जर, फतेहाबाद, आगरा, उत्तर प्रदेश

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