किसान


कुंवर आरपी सिंह, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।

 

संयोग है कि बिहार में चुनाव हो रहे हैं और देश में किसान हितैषी संघर्ष पर उतरे हुए हैं। फिलहाल चीनी बीमारी के समय देश में पहला चुनाव बिहार में होने जा रहा है। इससे आगे का वृत्तान्त देश के महान कथाकार प्रसिद्ध साहित्यकार आदरणीय फणीश्वर नाथ "रेणु" का व्यक्तिगत अनुभव पर आधारित है। मौसम चुनावी हो चुका है, ऐसे मेंं चुनावी बतकही शुरू करने जा रहे हैं।

शुरूआत साहित्यिक-चुनावी बातचीत से। आप सोंचियेगा, कहाँ राजनीति और कहाँ साहित्य ?  लेकिन रेणु जी दोनों ही विधाओं पर समान रूप से हस्तक्षेप रखते थे। रेणु जी ने सन् 1972 के विधानसभा चुनाव में निर्दलीय चुनाव लड़ा था। उनका चुनाव चिह्न था "नाव" !  हालांकि चुनावी वैतरणी में उनकी "नाव" डूब गयी, लेकिन उन्होंने राजनीति समझने बूझने वालों को काफी कुछ दिया। जैसे चुनाव प्रचार का तरीका। "रेणुजी" ने फारबिसगंज विधानसभा क्षेत्र को चुना था। दरअसल यह उनका ग्रामीण क्षेत्र भी था। उनका चुनावी भाषण अनोखा था। मैनें मतदाताओं से अपील की है कि वे मुझे पाव भर चावल और एक वोट दें। मैं अपने भाषण में रामचरित मानस की चौपाइयों और दोहों का उदाहरण दूँगा। कबीर को उद्दत करूँगा, अमीरखुसरो की भाषा बोलूँगा। गालिब़ और मीर को गाँव की बोली में पेश करूँगा।

राजनीति में किसानों की बात हवा-हवाई तरीके से किये जाने से वह चिन्तित थे। वह कहते थे कि धान का पेड़ होता है कि पौधा, जो यह नहीं जानते, वह समस्यायें उठायेंगे किसानों की? आज पूरा देश जब बात कर रहा है किसानों की, उनके लिए लोग आंदोलित हैं, लेकिन उनमें से तमाम हितैषी लोग नये कायदे कानून और किसानों की समस्याओं को कितना जानते, समझते हैं, यह भी एक सवाल है। ऐसे में "रेणु जी" की बात पर हमें गौ़र करना चाहिए।

 

राष्ट्रीय अध्यक्ष जय शिवा पटेल संघ

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