कुंवर आरपी सिंह, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
उत्तर प्रदेश के हाथरस के चंदवा क्षेत्र की सामूहिक दुष्कर्म की घटना अत्यंत दुखद होने के साथ ही महिला सुरक्षा और सामाजिक बराबरी के नाम पर किए जाने वाले तमाम दावों पर गंभीर सवाल खड़े करती है। सप्ताह भर पहले ऊंची जाति के युवकों ने अनुसूचित जाति समुदाय से ताल्लुक रखने वाली एक लड़की के साथ उस समय कथित रूप से बर्बरता की जब वह अपनी मां के साथ खेत में चारा काटने गई थी। उसे तमाम मेडिकल प्रयासों के बावजूद बचाया न जा सका। बेशक चारों आरोपियों को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है, लेकिन लोगों ने जब थाने का घेराव किया उसके बाद ही पुलिस ने आरोपियों के खिलाफ दुष्कर्म की धाराएं जोड़ी। दिल्ली में निर्भया के साथ हुई ज्यादती को लेकर जब देशभर में गुस्सा फूटा था, उसके बाद दुष्कर्म के मामले में कानून में व्यापक बदलाव किए गए थे, मगर हाथरस की यह बर्बरता पूर्ण घटना बताती है कि ऐसे असामाजिक तत्वों में कानून का कोई खौफ नहीं है और इन आठ वर्षों में महिला सुरक्षा के नाम पर जमीनी स्तर पर कुछ भी नहीं बदला है।
बेशक चारों आरोपियों को पुलिस ने पकड़ लिया है। उ.प्र. में ऐसे अपराधों की स्थित चिंताजनक है। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों के मामले में यह सूबा पहले नम्बर पर है। गाँव में छोटी जातियों के साथ भेदभाव और बर्बरता में बदलाव नहीं आया है। दर असल जिस जमीनी स्तर पर "जाति तोड़ो ,लोगों को जोडो़" का वातावरण बनना चाहिये था। उसके उलट अगड़ों को प्रशय देने से स्थित और बिगड़ीँ। उ.प्र.सरकार को हाथरस मामले से सबक लेते हुए , जल्दी आगे दूरदर्शी ठोस कदम उठाने ही होंगे, वर्ना जनता आगे चुनावों में सबक सिखा देगी। चौदह साल के बनवास के बाद 2017 में बीजेपी की वापसी हुई थी, उसे ऐसी समाज विघटनकारी और महिला विरोधी गतिविधियों को सख्ती से रोकना ही होगा।
राष्ट्रीय अध्यक्ष जय शिवा पटेल संघ
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