मुकेश कुमार ऋषि वर्मा, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
मैं होकर निराश
एक दिन पहुँच गया
जिंदा ही शमशान घाट
मैंने देखा -
मुर्दे को जलते चिता पर
चिता से निकलते धुँए को
एक मानवीय देह को
धीरे-धीरे राख में परिवर्तित होते हुए...
जाति भेद, ऊँच नीच
छोटा-बड़ा, अमीर-गरीब
पद-प्रतिष्ठा सब कुछ खत्म
वाकी बची एक मुट्ठी राख
वो भी उढ़ गई एक हवा के झोके से ...
मेरा माथा ठनका
मैं क्यों जी रहा हूँ
निराशा की गठरी सर पर रखकर
जब जीवन का सत्य
एक मुट्ठी राख है तो,
क्यों करता फिरूँ
खोटे करम
मिट गया मेरे मन का भरम
मैं करूँ अब जतन
आदमी से इंसान बनने का...
ग्राम रिहावली, डाक तारौली गुर्जर, फतेहाबाद, आगरा
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