किसानों और युवाओं की आवाज पर चुप्पी क्यों?


प्रभाकर सिंह, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।

 

 किसान हरियाणा में कृषि अध्यादेशों के विरोध में रैली निकाल रहे थे, पुलिस ने लाठीचार्ज किया, कई किसान घायल हो गए और यह सब सोचकर हैरानी होती है कि कमेरों की शान के नाम जानी जाने वाली अनुप्रिया पटेल चुप रहीं, एक शब्द भी नहीं बोली। अभी बीते दिन भी युवावों ने टार्च, लाइट जला कर सरकार से सांकेतिक विरोध दर्ज कराया रोजगार, रिजल्ट, नियुक्ति को लेकर, फिर भी आपकी चुप्पी बनी रही। कभी हरियाणा के किसान नेता दिल्ली लूटयन्स को हिला के रख देते थे, जबकि आज के जितने भी किसान नेता के रूप में नई पीढियां बाहर आई नेतृव में सब मुर्दा निकली। खुद के स्वार्थ में रेत में मुंह डालकर बांय-बांय कर रहे हैं, किंतु आपकी चुप्पी टूटने का नाम नही ले रही हैं। या बस किसानी जमात में पैदा होने पर खुद को किसान नेता मान रखी हैं। कभी इसी सोशल प्लेटफार्म पर आपके भक्त लड़ते थे कि जब आप मुख्यमंत्री बनेंगी तो सीएम आवास में चौपाल लगेंगी, लेकिन सांसद आवास में किसान चौपाल लगाने में क्या दिक्कत हुई?

सच मे जब चौपाल लगानी ही हैं तो खेत-खलिहान, बाग-बगीचों से बढ़िया कौन सी जगह होगी। विडंबना देखिये, ना आपने गठबंधन, मंत्री, सांसद की मजबूरी में आवाज निकाल रही हैं और ना ना आपके भक्त लोग ही कुछ लिख हैं ? आखिर किन छात्रों, नौजवानों के खातिर सामाजिक न्याय, आरक्षण पर भाषण देती हैं संसद में? आज वही सड़को पर कुछ कह रहा हैं तो उसकी आवाज नही सुनाई दे रही हैं? बड़े दबाव के बाद तो किसी तरह दिखावे बस प्रतापगढ़ कांड पर बाहर निकलकर आयी, जबकिं उसके अलावा आज तक कोई ऐसी घटना नही घटी, जिस पर सरकार से सवाल करने की जहमत नही उठायी? कुछ भी गलत होते नही दिख रहा हैं? हरियाणा के किसानों की भी मांग बेईमानी हैं? लाठीचार्ज सही हैं? पुलिस बल के साथ सादी वर्दी में किसानों को मारते लोगों के विषय पूछताछ करने, सवाल गलत हैं? क्यों इसी रामराज्य के लिए दिनभर माननीय-यशश्वीय करती रहती हैं? अब यूपी में कानून व्यवस्था, हत्या, बलात्कार, लूटपाट पर नही बोलेंगी मीडिया के सामने? जिस अखिलेश के शासन में ये सब आमतौर पर आम हो रखा हो, अब कहाँ गयी सवाल उठाने वाली आवाज और आंखे? अपने पूरे जीवनकाल में भी आपके पिता स्वर्गीय डॉ साहेब जी भी इतने कमजोर नही दिखे, जबकिं पूरे जीवन में कभी संसद व विधानसभा का मुंह नही देख सके। बल्कि समय के साथ और भी दमदार होते चले गए मसलन उनके ऊपर लाठी चार्ज भी इन्ही लोगो ने करवाया था, जिनके साथ आज सत्ता में बैठ के एसी की हवा फांक रही हैं। आप कितने किलोमीटर पैदल चली? कितने दिन भूखी सोई? आपके शरीर से कितना खून बहा? कितने लाठियां खाई? कितनी धूप-बरसात झेली? मसलन उनकी बेटी होने के नाते आपको प्रिविलेज में बहुत कुछ सीधे-सीधे मिल गया, पार्टी, सिम्बल, कार्यकर्ता, चंद कार्यालय ही सही साथ मे नाम-पहचान भी।

हैरत होती हैं इतने क्रांतिकारी नेता और दमदार आवाज के मालिक की बेटियां वक्त आने पर कुछ भर सीट और मंत्री पद नाम भर में गूंगी बन जाएंगी और इनके साथ के लोगो की मांथे की शिकन अब इनको परेसान नही करती हैं। किसानों की तकलीफों से अब सिर्फ भाषणों तक वास्ता राह जाएगा। खैर चाहिए तो था वक्त साथ यूपी का एक एक घर अजय कुमार लल्लू की तरह अपने पैरों से धांग पर कोई ना आपके लोग फर्जी खबर लिखते हैं कि 22 में मुख्यमंत्री अनुप्रिया......। क्या मतलब ऐसे खबरे लिखने, फैलाने से। सीएम पद इत्ती आसानी से थोड़े मिलता हैं। यूपी की सरकार कानून व्यवस्था, नियुक्ति, भर्ती, किसानों पर हुई लाठी चार्ज, बेरोजगारी को लेकर युवाओं के पक्ष में खड़ा होकर सांकेतिक विरोध करने के पक्ष में आपके खड़े बोलने से सरकार नाराज हो जाएगी या मंत्री पद मुश्किल हो जाएगा, पर आपके समर्थको का 22 में अनुप्रिया चिल्लाने से वाहवाही करती हैं या बस सीट का मामला हैं। कमेरों के खून में  इतना कम खून कैसे हो गुण यह नही नही समझ मे आ रहा है।

 

शोध छात्र इलाहाबाद विश्वविद्यालय

Post a Comment

Previous Post Next Post