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पितृ पक्ष में पड़ने की वजह से इंदिरा एकादशी का विशेष महत्व है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इंदिरा एकादशी का व्रत करने से एक करोड़ पितरों का उद्धार होता है और स्वयं के लिए स्वर्ग लोक का मार्ग प्रशस्त होता है. मान्यता है कि एकादशी के दिन विष्णुसहस्रनाम का पाठ करने से भगवान विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
इंदिरा एकादशी की पूजा विधि
- इंदिरा एकादशी के दिन सुबह उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण कर लें।
- अब व्रत का संल्प लेते हुए कहें, “मैं सार भोगों का त्याग कर निराहार एकादशी का व्रत करुंगा/करुंगी, हे प्रभु! मैं आपकी शरण में हूं आप मेरी रक्षा करें।”
- अब शालिग्राम को पंचामृत से स्नान कराकर वस्त्र पहनाएं।
- शालिग्राम की मूर्ति के सामने विधिपूर्वक श्राद्ध करें।
- धूप, दीप, गंध, पुष्प, नैवेद्य आदि से भगवान हृषीकेश की पूजा करें।
- पात्र ब्राह्मण को फलाहारी भोजन कराएं और दक्षिणा देकर विदा करें।
- दिन भर व्रत करें और केवल एक ही बार भोजन ग्रहण करें।
- दोपहर के समय किसी पवित्र नदी में जाकर स्नान करें। - पूरी रात जागरण करें और भजन गाएं।
- अगले दिन यानी कि द्वादश को सुबह भगवान की पूजा करे।
- फिर ब्राह्मण को भोजन कराकर उन्हें यथाशक्ति दान-दक्षिणा देकर विदा करें।
- अब अपने पूरे परिवार के साथ मौन रहकर खुद भी भोजन ग्रहण कर व्रत का पारण करें।
इंदिरा एकादशी व्रत कथा
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार प्राचीनकाल में सतयुग के समय में महिष्मति नाम की एक नगरी में इंद्रसेन नाम का एक प्रतापी राजा धर्मपूर्वक अपनी प्रजा का पालन करते हुए शासन करता था. वह राजा पुत्र, पौत्र और धन आदि से संपन्न और विष्णु का परम भक्त था. एक दिन जब राजा सुखपूर्वक अपनी सभा में बैठा था तो आकाश मार्ग से महर्षि नारद उतरकर उसकी सभा में आए. राजा उन्हें देखते ही हाथ जोड़कर खड़ा हो गया और विधिपूर्वक आसन व अर्घ्य दिया।
सुख से बैठकर मुनि ने राजा से पूछा, "हे राजन! आपके सातों अंग कुशलपूर्वक तो हैं? तुम्हारी बुद्धि धर्म में और तुम्हारा मन विष्णु भक्ति में तो रहता है?" देवर्षि नारद की ऐसी बातें सुनकर राजा ने कहा- "हे महर्षि! आपकी कृपा से मेरे राज्य में सब कुशल है तथा मेरे यहां यज्ञ कर्मादि सुकृत हो रहे हैं. आप कृपा करके अपने आगमन का कारण कहिए." तब ऋषि कहने लगे, "हे राजन! आप आश्चर्य देने वाले मेरे वचनों को सुनो।"
"मैं एक समय ब्रह्मलोक से यमलोक को गया, वहां श्रद्धापूर्वक यमराज से पूजित होकर मैंने धर्मशील और सत्यवान धर्मराज की प्रशंसा की. उसी यमराज की सभा में महान ज्ञानी और धर्मात्मा तुम्हारे पिता को एकादशी का व्रत भंग होने के कारण देखा. उन्होंने संदेशा दिया सो मैं तुम्हें कहता हूं. उन्होंने कहा कि पूर्व जन्म में कोई विघ्न हो जाने के कारण मैं यमराज के निकट रह रहा हूं, सो हे पुत्र यदि तुम आश्विन कृष्णा इंदिरा एकादशी का व्रत मेरे निमित्त करो तो मुझे स्वर्ग की प्राप्ति हो सकती है।
"इतना सुनकर राजा कहने लगा, "हे महर्षि! आप इस व्रत की विधि मुझसे कहिए." नारदजी कहने लगे, "आश्विन माह की कृष्ण पक्ष की दशमी के दिन प्रात:काल श्रद्धापूर्वक स्नानादि से निवृत्त होकर पुन: दोपहर को नदी आदि में जाकर स्नान करें_ फिर श्रद्धापूर्वक पितरों का श्राद्ध करें और एक बार भोजन करें. प्रात:काल होने पर एकादशी के दिन दातून आदि करके स्नान करें, फिर व्रत के नियमों को भक्तिपूर्वक ग्रहण करते हुए प्रतिज्ञा करें कि "मैं आज संपूर्ण भोगों को त्याग कर निराहार एकादशी का व्रत करूंगा।
"हे अच्युत! हे पुंडरीकाक्ष! मैं आपकी शरण हूं, आप मेरी रक्षा कीजिए, इस प्रकार नियमपूर्वक शालिग्राम की मूर्ति के आगे विधिपूर्वक श्राद्ध करके योग्य ब्राह्मणों को फलाहार का भोजन कराएं और दक्षिणा दें. पितरों के श्राद्ध से जो बच जाए उसको सूंघकर गौ को दें तथा धूप-दीप, गंध, पुष्प, नैवेद्य आदि सब सामग्री से ऋषिकेश भगवान का पूजन करें।"
"रात में भगवान के निकट जागरण करें. इसके बाद द्वादशी के दिन प्रात:काल होने पर भगवान का पूजन करके ब्राह्मणों को भोजन कराएं. भाई-बंधुओं, स्त्री और पुत्र सहित आप भी मौन होकर भोजन करें।"नारदजी कहने लगे, "हे राजन! इस विधि से यदि तुम आलस्य रहित होकर इस एकादशी का व्रत करोगे तो तुम्हारे पिता अवश्य ही स्वर्गलोक को जाएंगे. इतना कहकर नारदजी अंतर्ध्यान हो गए।नारदजी के कथनानुसार राजा द्वारा अपने बांधवों तथा दासों सहित व्रत करने से आकाश से पुष्पवर्षा हुई और उस राजा का पिता गरुड़ पर चढ़कर विष्णुलोक को गया. राजा इंद्रसेन भी एकादशी के व्रत के प्रभाव से निष्कंटक राज्य करके अंत में अपने पुत्र को सिंहासन पर बैठाकर स्वर्गलोक को गया।
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