उमा ठाकुर, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
हिन्दी भाषा देश की प्रतिष्ठा और संस्कार की भाषा है। जीवन में आगे बढ़ने के लिए जहाँ अन्य भाषाएं ज़रूरी है, वहीं मातृभाषा हिन्दी को जानना समझना भी उतना ही ज़रूरी है। हिन्दी भाषा अभिव्यक्ति का साधन ही नहीं, बल्कि राष्ट्रीय एकता और संस्कृति को बढावा देने के लिए भी ज़रूरी है। वर्तमान संदर्भ में सूचना प्रौधोगिकी और संचार माध्यमों के अभूतपूर्व विस्तार से हिन्दी भाषा का स्वरूप तेज़ी से बदला है। हमारी युवापीढ़ी देवनागरी के बजाए एसएमएस की भाषा प्रयोग कर रही है, परन्तु मेरा यह मानना है कि राष्ट्रीय परिपे्क्ष्य में हिन्दी ही ऐसी भाषा है, जो पूरे देश को एक सूत्र में बांधने में समर्थ है और विश्व भाषा बनने की अधिकारी है।
हिन्दी के सम्मान में चन्द पंक्तियाँ कहना चाहूंगी-
वर्ण माला के अक्षरों में छिपी
प्रकृति की अनमोल छटा में रची बसी
संस्कृति और नैतिक मूल्यों की
पहचान हिन्दी हूँ मैं.
भाषाएं नदियाँ हैं,महानदी है हिन्दी
बनी है भारत की संपर्क भाषा
विश्व भाषा बनने की अधिकारी
हिन्दी हूँ मैं.
आयुष्मान (साहित्य सदन) पंथाघाटी, हिमाचल
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