राज शर्मा, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
पौराणिक आख्यानों एवं ऐतिहासिक संदर्भों में हिमाचल प्रदेश के सुकेत क्षेत्र के पांगणा गांव का विशिष्ट स्थान है।यदि पांगणा को सुकेत संस्कृति का दर्पण कहा जाए तो अत्युक्ति न होगी।आज के द्रुतगामी समय के प्रवाह के साथ भी पांगणा में प्राचीन संस्कृति का मौलिक स्वरूप बरकरार है।भादो मास की शुक्ल पक्ष की चौथी तिथि को पत्थर चौथ त्योहार श्री गणेश पूजा के रुप में मनाया जाता है।
सुकेत संस्कृति साहित्य एवं जन कल्याण मंच पांगणा के अध्यक्ष डाक्टर हिमेन्द्र बाली का कहना है कि लोक मान्यता के अनुसार यदि इस दिन गलती से चांद को कोई व्यक्ति देख ले तो वह झूठे आक्षेप व आरोप का पूरे वर्ष भर भाजन बनता है। अतः इस दिन सभी व्यक्ति चांद देखने से बहुत ज्यादा परहेज करते हैं। यदि कोई अकारण चांद को देख भी लेता है तो उसे संभावित दोष व बुरे परिणाम का निराकरण करने के लिए चुपके-छुपके दूसरों के घरों की छत पर पत्थर फेंकने होते हैं, ताकि बदले में मिली गालियों से पत्थर चौथ के चंद्र दर्शन का दोष मिट सके। संस्कृति मर्मज्ञ डॉक्टर जगदीश शर्मा और व्यापार मंडल के अध्यक्ष सुमित गुप्ता का कहना है कि ऐसे में पत्थर फेंकने से मिली गलियों एवं क्रोध जनित भावों से पत्थर चौथ के दोष का शमन तो होता ही है, साथ ही लोक मान्यताओं और धार्मिक परंपराओं का भी संरक्षण होता है।
संस्कृति संरक्षक आनी (कुल्लू) हिमाचल प्रदेश