पता नहीं कोई हिंदी धारावाहिक कुर्बान हुआ को क्यों बना रहा है और जी टीवी वाले इसे दिखा क्यों रहे हैं


विनोद कुमार रावत, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।

 

बहुत दिनों से सोच रहा था कि लिखूं, फिर मैंने सोचा कि जैसा मैं सोच रहा हूं और उत्तराखंडी भी तो सोच रहे होंगे। उत्तराखंडी भाइयों के फेसबुक, व्हाट्स अप और ट्वीटर पर तो उत्तराखंड के उत्थान - पतन और संस्कृति के बारे में बहुत कुछ  पढ़ने को मिल जाता है, परन्तु जिस विषय की मैं बात कर रहा हूं, एक महिना इंतजार करने के बाद भी कहीं ना तो पढ़ने को मिला ना ही सुनने को, इसलिए आज आप उत्तराखंडी बुद्धिजीवीयों, विचारकों, और चिंतक भाइयों के सामने  जी टीवी पर रात 10-00बजे दिखाये जा रहे हिंदी धारावाहिक कुर्बान हुआ के संदर्भ में विरोध के रूप में लिख रहा हूं।

मित्रों! इस धारावाहिक का कथानक पृष्ठभूमि गढ़वाल में देवप्रयाग के किसी गांव की है। दो परिवारों की कहानी है, लड़की मुस्लिम परिवार से है और लड़का हिन्दू ब्राह्मण परिवार से। लड़के को लगता है कि लड़की के पिता ने उसकी बहन की हत्या की है और लड़का ( हिन्दू) मुस्लिम लड़की को तरह तरह की यातनाएं दे रहा है। बेतुकी कहानी इसी तरह से बेवजह बढ़ाई जा रही है। अब सोचने की बात यह है कि देवप्रयाग में मुस्लिम परिवार ही क्यों, दोनों हिन्दू परिवार भी तो हो सकते थे। क्या ऐसा जान बूझकर तो नहीं किया गया है।

हत्या की साज़िश जैसा कौनसैप्ट  गढ़वाल और कुमाऊं में वो भी देवप्रयाग जैसी पवित्र स्थान पर। हां हरिद्वार, देहरादून के तराई वाले क्षेत्र की कहानी होती तो सोचा जा सकता था, क्योंकि जबसे  पूरा हरीद्वार ज़िले के रूप में उत्तराखंड में शामिल किया गया है, तब उत्तराखंड बहुत ही बदनाम हुआ है। सारे अपराध इन तराई वाले इलाकों में होते हैं और बदनाम उत्तराखंड होता है, जिसका इन अपराधिक घटनाओं से कोई लेना-देना नहीं होता।

गढ़वाल की पृष्ठभूमि है, इसलिए कुछ कलाकारों से यदा कदा गढ़वाली के शब्दों जैसे-ब्वारी " एक कहावत" तिमला का तिमला खत्या कर नंग्या नंगि दिख्या "  जैसे कुछ और शब्दों को प्रयोग बड़े ही भद्दे तरीके से किये जा रहे हैं, लगता है जबरदस्ती बुलवाये जा रहे हैं। इसके अलावा इस धारावाहिक का उत्तराखंड से कुछ भी लेना देना नहीं है। पता नहीं कोई इस धारावाहिक को क्यों बना रहा है और जी टीवी वाले इसे दिखा क्यों रहे हैं। इस धारावाहिक को दिखाने से उत्तराखंड के सांस्कृतिक परिवेश को नुकसान ही पहुंचाया जा रहा है।

मित्रों! आप सभी  बुद्धि जीवीयों विचारकों, चिन्तकों से मेरा अनुरोध है कि कृपया इस धारावाहिक "कुर्बान हुआ " का विरोध करें और इस तरह से सोची समझी साज़िश के अंतर्गत किये जा रहे सांस्कृतिक कुठाराघात से उत्तराखंड की रक्षा करें।

मैंने इसमें उत्तराखंड के सरकारी तंत्र से अनुरोध इसलिए नहीं किया, क्योंकि सरकारी तंत्र से इस संदर्भ में अपेक्षा रखना अपने आप को धोखा देने जैसा होगा।

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