शि.वा.ब्यूरो, नई दिल्ली। कोरोनावायरस महामारी संकट के बीच देश भर में लागू लॉकडाउन के दौरान निजी स्कूलों द्वारा फीस वसूली का मामला अब सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है। राजस्थान, ओड़िशा, पंजाब, गुजरात, हरियाणा, उत्तराखंड, महाराष्ट्र, दिल्ली और मध्य प्रदेश (आठ राज्यों) के अभिभावकों के एक संघ ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर स्कूलों की इस मनमानी पर रोक लगाने की गुहार लगायी है। याचिका में कहा गया है लॉकडाउन के दौरान कई निजी स्कूलों द्वारा पूरी फीस वसूली गयी और अभिभावकों पर दबाव बनाया गया। एसोसिएशन ने फीस को लेकर स्कूलों की मनमानी पर अंकुश लगाने के लिए नियमन और व्यवस्था बनाये जाने की गुहार लगायी गयी है।
याचिका में कहा गया है कि ऑनलाइन क्लास के नाम पर स्कूल पूरी फीस वसूल रहे हैं, जबकि कई राज्यों की सरकारों ने कहा है कि लॉकडाउन की अवधि में स्कूल केवल ट्यूशन फीस लें। याचिका में यह भी कहा गया कि कई निजी स्कूल तो ऑनलाइन क्लास के नाम पर अगल से फीस वसूल रहे हैं, ये सरासर गलत है।
सांसद और भाजपा के शिक्षक सेल की सदस्य लॉकेट चटर्जी की तरफ से भी मांग की गयी है कि निजी स्कूलों को मार्च के मध्य में शुरू होने वाले संपूर्ण लॉकडाउन अवधि के लिए किसी तरह की फीस नहीं लेनी चाहिए। हालांकि निजी स्कूलों ने भी राज्य सरकारों के साथ बातचीत में कहा है कि उनके भी कई ऐसे खर्च हैं तो पूरी तरह बच्चों की फीस पर ही आधारित हैं।
निजी स्कूलों का कहना है कि बच्चों की फीस नहीं आयेगी तो वे शिक्षकों और अन्य कर्मचारियों को वेतन कहां से देंगे। कई स्कूल इस बात पर राजी भी हुए थे कि वे केवल ट्यूशन फीस लेंगे और अन्य प्रकार के शुल्क में लॉकडाउन की अवधि में छूट दी जायेगी। कई स्कूलों ने री-एडमिशन चार्ज नहीं लेने की बात भी कही थी।
इस मामले में बंबई हाई कोर्ट ने इस साल स्कूलों में फीस बढोत्तरी को रोकने वाले सरकारी प्रस्ताव पर अंतरिम रोक लगाते हुए कहा है कि महाराष्ट्र सरकार को निजी गैर सहायता प्राप्त स्कूलों या अन्य बोर्डों के स्कूलों की फीस संरचना में हस्तक्षेप करने वाला आदेश जारी करने का अधिकार नहीं है। महाराष्ट्र सरकार की ओर से आठ मई 2020 को जारी सरकारी प्रस्ताव में राज्य के सभी शैक्षिक संस्थानों को कोविड-19 महामारी के दृष्टिगत शैक्षिक सत्र 20-21 के लिए फीस नहीं बढ़ाने का आदेश दिया था। इसपर अदालत ने कहा था कि हमें लगता है कि निजी गैरसहायता प्राप्त स्कूलों का प्रबंधन छात्रों और अभिभावकों को ऐसी किस्तों में फीस का भुगतान करने के लिए विकल्प प्रदान करने पर विचार कर सकता है, जो उचित होने के साथ-साथ उन्हें ऑनलाइन शुल्क का भुगतान करने का विकल्प प्रदान करने की अनुमति देता हो।
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