हवलेश कुमार पटेल, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
कानपुर में पुलिस पर हुए बदमाशों के अटैक में आठ पुलिस वालों की जान का जाना कोई मामूली बात नहीं है और न ही यह केवल तात्कालिक मामला है। यह विकास दुबे के दुस्साहस की लम्बी कड़ी है, जिसे पुष्पित पल्लवित किया पुलिस एवं प्रशासनिक विभाग के अफसरों ने, साथ ही राजनेताओं ने भी विकास दुबे के अपराधिक इतिहास की इबारत लिखने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है। हालांकि योगी सरकार ने शहीद पुलिस वालों के परिजनों को एक-एक करोड़, एक नौकरी और अतिरिक्त पैंशन देकर डेमेज कंट्रोल करने की भरपूर कोशिश की है। इसके साथ ही डेमेज कंट्रोल के लिए मुख्य अपराधी के खात्मे तक आला अफसरों को कानपुर न छोड़ने का फरमान भी दिया है, लेकिन सवाल ये है कि क्या अपराधी को सजा देने, शहीदों के परिजनों की रूपये पैसे व नौकरी देकर मदद करने से डेमेज कंट्रोल सम्भव है, शायद नहीं। असल डेमेज कंट्रोल के लिए सरकार को ऐसी व्यवस्था करनी होगी कि विकास दुबे बनने ही न पायें।
पूरे प्रदेश को झकझोर देने वाले कानपुर के इस प्रकरण में प्रथम दृष्टया पुलिस वाले ही दोषी नजर आ रहे हैं। सूत्रों के अनुसार चैबेपुर के थानेदार विनय तिवारी ने विकास दुबे के खिलाफ धारा 307 में रिपोर्ट दर्ज कराने आये राहुल को डरा-धमकाकर भगा दिया था। इसके बाद सीओ देवेन्द्र मिश्रा के दबाव के चलते रिपोर्ट दर्ज तो कर ली, लेकिन जब विकास दुबे को गिरफ्तार करने के लिए टीम गयी तो वह सबसे पीछे थे और हमला होते हुए मौके से ही फरार हो गये। विकास दुबे की टीम की तैयारी देखकर कयास तो यह भी लगाये जा रहे हैं कि दबिश की सूचना तो विनय तिवारी ने तो लीक नहीं कर दी थी। हालांकि आईजी रेंज ने कहा है कि जांच में दोषी जाये जाने पर कार्यवाही करने की बात कही है, लेकिन इतना ही काफी नहीं है। आला अफसरों सहित अन्य जिम्मेदारों को मिलकर ऐसी नीति बनानी होगी, जिससे विकास दुबे जैसे लोग पनपने ही न पायें। तभी सही मायनों में डेमेज कंट्रोल होगा।