डॉ शम्भू पंवार, नई दिल्ली। आजादी के बाद भारत में पहली बार ऐसा समय आया है, जब पड़ोसी देश सीमा पर एक साथ गोलीबारी व दूसरी ओर वैश्विक महामारी कोरोना से देश झुझ रहा है। ऐसे पड़ोसी देश को हमने भाई माना था परन्तु वो तो पक्की दुश्मनी निभा रहा है।
उक्त उद्धबोधन राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना इकाई म.प्र. के वेब कवि सम्मेलन में बतौर मुख्य अतिथि एवं संचेतना के संरक्षक वरिष्ठ साहित्यकार हरेराम वाजपेयी ने अपने वक्तव्य में दिया। उन्होंने चीन पर कटाक्ष करते हुए अपनी कविता के माध्यम से कहा -
हमने तुमको भाई माना पर तुमने पीठ में छुरा भोंका,
शत्रु को मित्र बनाया था और तुमने दिया धोखा
हम पंचशील अनुयायी है, तुम लाशो के व्यापारी हो
हम समझ नहीं आए अब तक, तुमने क्यों रास्ता रोका।
समारोह की अध्यक्षता डाॅ. शैलेन्द्र शर्मा कुलानुशासक विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन ने की। अध्यक्षीय भाषण में उन्होंने कहा कि चीन के कुटिल इरादे ध्वस्त करने का वक्त आ गया है। कोरोना महामारी ने यह दिखाया है कि निरंकुश चीन की दुनिया को भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है। हिमालयी क्षेत्र में चीन के नापाक मंसूबो से निपटने के लिए भारत की वीर सेना एवं सरकार मजबूत है।
इससे पूर्व कवि सम्मेलन का शुभारम्भ मधुर स्वर की प्रदेश महासचिव पायल परदेशी ने सरस्वती वंदना एवं अपनी कविता पर्यावरण के संरक्षण के समर्पित रचना से किया-
करे एक दिन जतन फिर हो जाए मगन,
निशदिन पर्यावरण पर काम होना चाहिए।
कार्यक्रम में अतिथियों एवं कवियों को शाब्दिक स्वागत राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना के अध्यक्ष डाॅ. प्रभु चैधरी ने कहा कि हमारी संस्था का मुख्य उद्देश्य राजभाषा, सम्पर्क भाषा हिन्दी को राष्ट्रभाषा के सर्वोच्च पद की प्रतिष्ठा दिलाना है। हम अपने दैनिक कार्यो में हिन्दी भाषा एवं नागरी लिपि का भी प्रयोग करेंगे। संचेतना नाम के अनुरूप सतत समारोह के माध्यम से सक्रिय बने रहे। कवियित्री एवं राष्ट्रीय महासचिव अमृता अवस्थी ने काव्य रचना पेश की-
गर भाषा मौन ना होती,
जब दिन को दीन कहा जाये
और सुख भी सूख-सूख जाये,
जब दिल का चैन भी चेन होने लगे
वरिष्ठ साहित्यकार शिक्षक संचेतना के परामर्शदाता अनिल ओझा ने कहा-
अद्भुत भाईचारा
हो चाहे वो मंदिर मस्जिद हो चर्च या गुरूद्वारा
लगा सभी के निर्माणो में वहीं ईंट पत्थर गारा
करे इबादत पूजन अर्चन सबकी मंजिल एक है।
राष्ट्रीय कार्यालय सचिव प्रभा बैरागी ने गीत पेश किया-
चलना सिखा दिया है, गलना सीखा दिया है,
घनघोर आंधियों में चलना सीखा दिया है।
प्रदेशाध्यक्ष दिनेश परमार-
मेरी मंजिल ना पुछे कि मेरी मंजिल कहां है,
अभी तो सफर का इरादा क्या है।
कवि सम्मेलन की संचालक एवं राष्ट्रीय सचिव रागिनी स्वर्णकार ( शर्मा) ने कहा-
नेह की मधु रागिनी से यूं सजानी चाहिए।
जिन्दगी इक है गजल सी गुनगुनानी चाहिए।‘
दर्द की ये घाटियाँ भरती न रोने से कभी,
इनको हँसके पार करले वो जवानी चाहिए
इस अवसर पर वरिष्ठ कवियित्री एवं राष्ट्रीय उपाध्यक्ष उर्षा शर्मा भी उपस्थित थी। अंत में आभार दिनेश परमार प्रदेशाध्यक्ष ने आभार व्यक्त किया।
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