प्रभाकर सिंह, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
मजाक की भी हद होती है। अब बॉलीबुड की हीरोइने भी रंगभेद के खिलाफ बोल रही हैं, जो दिन भर आकर टीवी पर बोलती रहती की ये क्रीम लगाओ और कालेपन से छुटकारा पाओ। इनके ऐड को देखकर एक सांवली लड़की कितना हीनताबोध से भर जाती होगी, इन्हें अंदाजा भी नही। दिन भर टीवी पर आकर गोरा बनाने की क्रीम, साबुन, तेल पावडर बेचने वाली ये अभिनेत्रियां जब अमेरिकी रंगभेद के खिलाफ बोलती है तो लगता आशाराम ब्रम्हचर्य का उपदेश दे रहे। हमारा समाज घोर रंगभेदी समाज है।बॉलीबुड में अब अभिनय पैमाना ही नही रहा हीरोइन उसे ही बनना जो गोरी, मॉडल और डायरेक्टर के हिसाब की फिगर वाली लड़की हो।
हीरोइन ही नही, आपको हीरो भी बनना है तो आपका लंबा-चौड़ा, गुड लुकिंग होना जरूरी है। कितने हीरो है, जो सीधे मॉडलिंग से फिल्मों में आ गए है। अमेरिका में आप देखिये बहुत से अश्वेत लोग फिल्मों में हीरो होते और वो बेहद लोकप्रिय है। हमारे यहां तो अब विलेन भी सोनू सूद की तरह चाहिए। बाकी समाज का तो जानते ही है। सबको बहू, पत्नी मिल्की व्हाइट ही चाहिए। जो बच्चा सांवला होता है, उसका अपने आप नाम कल्लू, कालिया हो जाता है। सबसे ज्यादा भेदभाव लड़कियों के साथ होता है, भले से वो कितनी गुणसम्पन्न हो, लेकिन उनका रंग उनकी सारी प्रतिभा के आड़े आ जाता है और एक विडंबना ये भी है कि लड़का खुद जैसे कोयले की तरह हो उसे भी शादी के लिए लड़की हीरे की तरह चमकदार चाहिए।
एयर हॉस्टेज बनने वाली लड़कियों की योग्यता क्या है? रिसेप्शसन पर बैठने वाली लड़कियां, टीवी पर एकनकरिंग करने वाली लड़कियां या ऐसी और जगहों पर काम करने वाली लड़कियों में योग्यता के साथ उनका सुंदर होना, अच्छा फिगर होना सबसे बड़ी योग्यता है। और तो और कहीं सेमिनार होता चाहे वो फेमिनिज्म पर ही हो, वहां भी मेहमानों के स्वागत के लिए, बुके देने के लिए ज्यादातर सुंदर लड़कियों का चयन होता और उन्हें हिदायत भी दी जाती है की अच्छे से तैयार होकर आना। तो अमेरिका को बाद में देखना वहां एक घटना हुई है यहां हर दिन लोग रंगभेद का शिकार होते है।
रिसर्च स्कॉलर, इलाहाबाद विश्वविद्यालय, इलाहाबाद