पुस्तक नीति में बदलाव करना चाह रही सरकार, अभी तक छपने नहीं गयी किताबें (शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र के वर्ष 12, अंक संख्या-29, 14 फरवरी 2016 में प्रकाशित लेख का पुनः प्रकाशन)


शि.वा.ब्यूरो, लखनऊ। किताबों का कवर पेज आकर्षक बनेगा या कुछ और.. ये तो तय नहीं लेकिन प्राइमरी स्कूलों में निशुल्क दी जाने वाली पाठय पुस्तकें अभी तक छपने नहीं जा पाई हैं। सरकार पुस्तक नीति में बड़ा बदलाव करना चाह रही है लेकिन अभी तक एक राय नहीं बन पाई है। अप्रैल से नया सत्र शुरू होना है। इस बार कवर पेज को आकर्षक बनाने के लिए इन्हें आर्ट पेपर पर छापने का प्रस्ताव है। वहीं इन्हें किताबों के अंदर के पेज छापने वाले प्रकाशकों से छपवाने के लिए भी प्रस्ताव जा चुका है। किताबों के अंदर के पेज और कवर पेज अलग-अलग प्रकाशक छापते हैं। अभी तक कवर पेज आईबीए की पैनलब( सिक्योरिटी प्रेस से छपते आए हैं। ये व्यवस्था पिछले 17-18 वर्षो से है। ऐसा इसलिए कि यहां से छपने वाले कवर पेज पर वाॅटर मार्क और फ्लोरोसेंट फाइबर आदि जैसे सिक्योरिटी इनपुट होते हैं। ऐसा इसलिए किया जाता है कि ये किताबें निशुल्क दी जाती हैं और इन्हें बाजार में बेचा नहीं जा सकता। आर्ट पेपर पर वॉटर मार्क संभव नहीं है। वहीं इस कवर पेज के साथ बाइडिंग का खर्चा भी बढ़ेगा।राज्य सरकार कक्षा 1 से 8 तक पढ़ने वाले लगभग 2 करोड़ विद्यार्थियों को निशुल्क पुाठयपुस्तकें देती है। 
आरोप है कि ये विभाग और प्रकाशकों की मिलीभगत है। पाठ्यपुस्तकों में घटिया कागज इस्तेमाल करने वाले प्रकाशक कवर पेज में भी खेल करेंगे। सिक्योरिटीयुक्त न होने की वजह से बाजार में इसे बिकने से रोका नहीं जा सकेगा। वहीं इससे सरकार को राजस्व का नुकसान भी होगा। पिछले वर्ष नेशनल टेस्ट हाउस गाजियाबाद की जांच में पिछले वर्ष 25 फर्मे ऐसी रहीं जिन्होंने घटिया कागज का इस्तेमाल किया। इन प्रकाशकों के भुगतान में 20 फीसदी की कटौती प्रस्तावित है। ऐसे प्रकाशकों को कवर पेज का भी ठेका देना गलत होगा।


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