परिंदो लौट जाओ


शालिनी जैन, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।

 

परिंदो लौट जाओ आशियानों में 

न उड़ो आसमानो में 

अँधियों का दौर है 

वर्चस्व की दौड है 

अब खतरे चारो ओर है 

अब तो साँसों को पाने की भी होड़ है 

तन्हाइयो का दौर है 

रिश्तो में भी अब तरन्नुम दिखती नहीं 

हसरते अनगिनत पर अब

कुछ रस्मे भी निभती नहीं 

रिश्तो में प्यार की जगह भार है 

अब तो रिश्ते क्या

अपनी परछाइयों से भी घबरा रहे 

छुप रहे थे अपने में 

रख रिश्तो को ताक पर 

अब वक़्त ने दिया है एक मौका 

रिश्तो को सवारने और निखारने का 

अनगिनत ख्वाहिशें

और दौड़ का बने थे हम हिस्सा 

आज फिर से अपने संस्कार और

संस्कृति को पाने का वक़्त आया है 

आ लौट चले फिर उस ज़माने में

जिस को हमने गवाया है 

 जहाँ दूरिया की कोई जगह नहीं होती 

घर मन्दिर सा होता और बडों की जगह

वृद्ध आश्रम में नहीं होती 

आ उस आँचल में फिर से छिप जाये

जहाँ रिश्तो से दूरिया रूबरू नहीं होती 

आ लौट चले उस ज़माने में 

आ लौट चले उस ज़माने में 

परिंदो लौट जाओ आशियानों में 

न उड़ो आसमानो में। ......... 

 

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