अंशु शर्मा, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
रितु! आज तुम अच्छा नही कर रही हो, माँ-बाबू जी के साथ। क्यों मैं क्या कर रही हूं? रितु ने रोहित को तेज आवाज में बोला। देखो ऋतु! मेरी भाभी की बुराई करती हो कि वो घर नही बुलाती माँ-बाबुजी को, पर तुम जानती हो, भाभी नौकरी करती है। समय नही होता उनको बुला कर ध्यान रख सके, तो छुट्टियों मे रहने जाती है, ससुराल अपनी वो और तुम तो इतना रहती भी नही वहाँ। भाभी उनकी सेहत का ध्यान रखती है, फोन करती है रोज। दवाई, कपडे, जरूरत का सामान कुरियर करती है। बहुत कुछ करती है। पर बुला कर भी तुम भी माँ-बाबू जी को बहुत जवाब देती हो। काव्य को जाने नही देती उनके पास। अगर मै ना हूँ यहाँ, मुझे क्या पता नही कि उनके साथ अच्छा व्यवहार नहीं करती।
देखो रोहित! ये इल्जाम नही लगाओ। मैने कब मना किया तुम्हे बुलाने को गाँव से यहाँ। मै सवाल-जवाब मे नही उलझना चाहता। ऋतु! तुम जानती हो तुम गलत हो। रोहित गुस्से मे चला गया, तभी थोडी देर बाद ऋतु की मम्मी का फोन आया।
हैलो ऋतु बेटी! हैलो मम्मी! कैसी हो ? नाश्ता किया आपने? हाँ बेटी बस करेगें।
दस बज गये, भाभी भी कितनी लापरवाही करती है? खुद तो कुछ खा ही लिया होगा, ऋतू जोर से बोली। नही इसी समय हम करते है। वाक करके आते है, तब चाय-बिस्किट या रस्क ले लेते है तो सहारा हो जाता है। इन्हे बीपी की और मुझे शुगर की गोली जो लेनी होती है। फिर बस दस बजे ही भूख लगती है। और हाँ, तू मेरी बहु की बुराई नही करा कर। ओहो! मम्मी मेरी बहु। हँसने लगती है दोनो। तेरे माँ-बाबू जी ने खा लिया? ऋतु की मम्मी ने पूछा-हाँ माँ! अगर मै ना दूँ तो माँ रसोई से अपने आप चाय बना लेती है। कभी पराँठे भी सेक लेती है। हाँ मुझे पता है, तेरे साथ रसोई मे हाथ बटाती है। मै कर लूँ तो तू भाभी को अपनी दोष देती है। ऋतू की मम्मी ने समझाते हुए बोला। ओहो! मम्मी आप तो जब देखो मुझे ही लेक्चर सुनाती हो। अच्छा चल छोड और क्या हो रहा है? कुछ नही मम्मी बस वही घर का काम काज। अब काम भी बढ गया है, माँ-बाबू जी भी आये हुए है। हाँ बेटा! वो तो थोडा अंतर पडता है, पर घर मे भी सूनापन खत्म होता है। बच्चे चार अच्छी बाते ही सीखते है। देख तेरे पापा ने अरनव को पूजा-पाठ, आरती और कितनी कहानियां भी सीखा दी है। रामायण मे क्या हुआ, सब पता है। अभी तो चार साल का है। मेरे और अपने दादू के आसपास ही रहता है, उनका लाडला है।
हाँ माँ आप दोनो की बात अलग है। मेरा काव्य तो जाता ही नही दादी-दादू के पास ऋतू थोडा मुँह बनाती बोली।
। जाता नही या तूने हमेशा रोका है उसे उन दोनो के साथ खाने या खेलने को कल शाम रोहित ने फोन किया की तुझे समझाऊँ। ओहो तभी रोहित आज गुस्से मे थे। ऋतु गुस्से से बोली। याद रख तेरे पति भी उनके बेटे है । तेरे सास ,ससुर को कितना दुख होता होगा ये देखकर की पोते को खिला नही पाते सामने होते हुऐ भी। माँ मुझे पसंद नही बहुत बात है।बंधन हो जाता है समय पर सब चाहिए ये नही खाना मेरी बनती नही उनसे। चुप कर ऋतु । बनती नही की बात नही तू उन्हे अपना नही मानना चाहती ।तेरी भाभी की,जिठानी तू चार कमियों को गिनाती है ,कभी खुद को भी देख । जब तुझे पेट मे दर्द होगा तो भी क्या तू चाट समोसे खाएगी नही ना! तो उनको अपने शरीर के हिसाब से खाना है वो बंधन है?
मुझे शुगर है बहुत चीजे नही खानी तो क्या तेरी भाभी चिढकर बोले। वो समझती है। तेरी तरह नही है। मम्मी आप भाभी की कमियों को छिपाती हो। पता नही क्या मुझे देख ऋतु! दूर बैठकर बहुत कमियों को देखा जा सकता है, वो जो होती भी नही। हम दोनो खुश है कि बहु बहुत अच्छी मिली। वो भी हमारी बहुत इज्ज़त करती है। कभी जवाब नही देती। अरनव को रोकती नही, हमारे पास आने से। थोडी बहुत बाते हो भी तो उसे भी हमारी नजर आती होगीं।
अपनेपन से रिश्ते निभे तो बाते नजरअंदाज हो जाती है। अब तेरे पापा से भी तो कितने विचार नही मिलते मेरे। पर पति-पत्नी साथ प्यार से रहते है। वही हर रिश्ते की बात है। हाँ ऋतु! तू दुसरो की कमी निकालती है, तब जज बन जाती है और तेरे पर आए कोई बात तो अपना वकील बन जाती है। तेरी नजर बस कमियों को गिनवाती है। कभी अपनी कमियों को भी देखना, अपने सास-ससुर की नजरो से। सोचते होगे कि एक बहु है, वो भी आदत से खराब। वो भी हमारी तरह अपने पोते को खिलाना चाहते होगें। तुझसे बाते करके हँसना चाहते होगें। सबसे अपनी बहु की देखभाल करने की आदत को सुनाना चाहते होगे कि बहु बहुत ध्यान रखती है हमारा। बहुत बार समझाया तुझे, पर तुझे ना जाने कब अक्ल आयेगी। अब भी समय है, रोहित को दिखा कि तू अच्छी बहु भी है और खुद का वकील दुसरो का जज बनना बंद कर। मै अब से कोई कमी ना सुँनू, कोशिश कर उनको खुश रखे। बडो का आर्शीवाद मन से निकलता है, तो जरूर फलता है। अगर तेरी भाभी हमारे साथ करे ऐसा तो तुझे गुस्सा आयेगा, है ना।
हाँ माँ! शायद आप सही कह रही हो। अब काव्य को नही रोकुँगी दादू दादी के पास जाने से। कोशिश करूंगी कि दुखी ना हो मेरी वजह से। शाबाश बेटी आज मन खुश हो गया ये सुनकर। चल रखती हूँ फोन। बुरा नही मानना, माँ-पिता का फर्ज होता है, बच्चो को गलतियों का अहसास कराना। हाँ मम्मी मे कोशिश जरूर करूगी और फोन रख कर फल काटकर प्लेट मे रख कर काव्य को आवाज दी। काव्य चलो आज दादू-दादी के साथ फल खाते है। काव्य को लेकर अपने सास ससुर के कमरे की ओर बढ चली।
चैन्नई
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