पाप का एहसास


कुंवर आरपी सिंह, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।


पूर्णिमा की रात थी, जंगल में तथागत बुद्ध भगवान एक वृक्ष के नीचे विश्राम कर रहे थे। प्रकाशवान चंद्रमा की रंगत देखते ही बनती थी। तभी पास के गाँव के कुछ मनचले युवक बलात् एक स्त्री को लेकर उधर से गुजरकर और जंगल की ओर चले गये। आगे जाकर उन मदहोश लड़को ने नशेमें उस स्त्री के वस्त्र भी छीन लिये और जमकर मदिरापान कर नाचने उछलने लगे। उनको बेहोश हुआ देखकर वह स्त्री चुपके से वहाँ से भाग निकली। लड़को को जब जरा होश आया तो उन्होंने देखा कि वे जिसके लिये नाच रहे थे वह उनके बीच नहीं है। युवक तुरन्त उसे खोजने निकले, लेकिन रात में जंगल में उसे ढूँढना उन्हें बहुत मुश्किल हो रहा था।  ढूँढते हुए वे सब उस ओर आ पहुँचे, जहाँ भगवान बुद्ध विश्राम कर रहे थे। उन युवकों ने आपस में मंत्रणा की, कि यही एक रास्ता है, क्यों न इस भिक्षु से उसके बारे में पूँछा जाय, शायद इसने देखा हो। सब सहमत होकर बुद्ध के पास गये और कहा- सुनो! क्या तुमने इधर से एक सुन्दर युवती को भागकर जाते हुए देखा है?  बुद्ध ने संयम से कहा-कोई निकला तो जरूर, लेकिन कौन निकला, कौन नहीं, यह कहना मुश्किल है और यह व्याख्यान करने की मेरी कोई इच्छा भी नहीं है। वैसे वह तुम्हारी कौन थी, जिसे सब ढूँढ रहो ?  वे युवक थोड़ी देर तक असमंजस में खड़े सोंचते विचारते रहे। नशा गायब हो चुका था। उन्हें उस जगह पर तथागत की आभा विशेष की अनुभूति हुई और फिर उन्हें अपनी गलती का एहसास हुआ और यकायक वे सब  भगवान बुद्ध से क्षमां मांगकर सिर झुकाकर चुपचाप निकल गये।


राष्ट्रीय अध्यक्ष जय शिवा पटेल संघ 


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