टी सी ठाकुर, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
हिमाचल प्रदेश जिला मण्डी करसोग उपमण्डल के अंतर्गत पोखी नामक स्थान पर साक्षात विराजमान हैं, भीष्म पितामह के अवतार नाग पोखी। गंगा नंदन नाग पोखी जी को पितामाह भीष्म का अवतार माना ना जाता है। पूर्व समय से पोखी गांव में कोई ब्राह्मण हरिद्वार गया था और नाग पोखी जी कीलटे में विराजमान हो गये। जब भगवान कीलटे में विराजमान होकर पंडित जी के साथ चल पडे तो कीलटे का वजन कभी पुष्पों के समान तो कभी वज्र के समान होने लगा और वो पंडित फ्रिश बाउडी के पास पहुच गये। वहां गुस्से के मारे उन्होंने अपना किलटा फेंक दिया, जिससे प्रभु की एक बाजु टुट गयी थी। फिर कीलटे का वजन पुष्पों के समान हल्का होकर वहां से चलने लगा तो पोखी के ठारहु में पहुंच गया। पोखी गांव में रिच्छ् मुआणे ने इधर अधिकार किया हुआ था तो मालिक ने अपनी शक्तियों से उनको ठारूह नामक स्थान में गाडकर अपनी जगह बनाई और वहां से चिटियों की डोर शुरू हो गया, जिसमें एक डोर पोखी गांव तक शुरू हुआ और वहां पर सुन्दर कोठी का निर्माण किया। दूसरी दौड़ चुड़ यानी बहली गांव के लिए लगी। वहां देउरे का निर्माण किया गया, जहां नाग पोखी आज भी पिंडी के रूप में शिला विग्रह में विराजमान है।
क्षेत्र के युवा प्यारे लाल बताते है कि उन्होंने यह जानकारी अपने बड़े बुजुर्गों व जनश्रुतियों के अनुसार सुनी है। नाग पोखी से पहले पोखी गांव नाग च्वासी जी का अधिकार हुआ करता था। नाग पोखी ने अपने शांत स्वभाव से नाग राजा च्वासी से उनके मुख्य गण सराजपाल को अपने अधीन किया था। वीजु पताल, सराजपाल, नाग च्वासी जी के मुख्य गणों मे से एक है। नाग पोखी जी ने उन्हें यह बोलकर अपने गणों में शामिल किया कि नाग च्वासी जी उन्हें भस्म देते है, तो नाग पोखी ने अपनी कोमलता से उन्हें अपनी दाहिनी जगह दी थी।
आज भी नाग पोखी जी की दाहिनी (ओर) पशली (जगह )में सराजपाल विराजमान है। इसके पश्चात नाग च्वासी ने नाग पोखी जी के मंदिर को गिराने के लिए आसमानी बिजली छोडी तो सराजपाल नें अपनी कनिष्ठिका उंगली में समेट ली थी तो सुरजीपाल ने वार करके नाग च्वासी जी का मंदिर ही समाप्त कर दिया था। फिर नाग च्वासी जी को अधिकार क्षेत्र दिया गया और बहल से पिछे ओडा डाल दिया गया। उसके पश्चात नाग पोखी ने अपनी शक्तियों से अनेक गणों को शामिल किया।
च्वासी करसोग (मण्डी) हिमाचल प्रदेश
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