मानव संस्कृति और संस्कारों का सबसे बड़ा यज्ञ है कुम्भ (शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र के वर्ष 12, अंक संख्या-29, 14 फरवरी 2016 में प्रकाशित लेख का पुनः प्रकाशन)


सुनील वर्मा, हरिद्वार। कुम्भ और अर्द्ध कुम्भ जैंसे अनुष्ठान भारत के सनातनी परम्पराओं के ध्वज वाहक हैं। वेदों और पुराणों में वर्णित है, कि धरती पर लगने वाला यह विशाल धार्मिक मेला मानव संस्कृति और संस्कारों का सबसे बड़ा यज्ञ है। ट्टषि-मुनियों ने अपने ग्रंथ और पुराणों में इस बात का भी उल्लेख किया है, कि माघ मास में लगने वाले इस अलौकिक मेले में स्वयं देवता भी गंगा तट पर निवास करते हैं। नासिक, प्रयाग, उज्जैन और हरिद्वार चार ऐसे पावन तीर्थ हैं, जहां पर अमृत स्वरूपा मां गंगा के पतित पावन तट पर कुम्भ, अर्द्ध कुम्भ का अद्भुत मेला लगता है, इनमें तीर्थराज प्रयाग ही ऐसा तीर्थ है जहां प्रत्येक वर्ष माघ मेला भी आयोजित होता है।



नए साल के साथ ही इस बार उत्तराखंड में विराजमान चार धाम के प्रथम द्वार हरिद्वार में अर्द्ध कुम्भ का मेला आरम्भ हो गया था। देश ही नहीं बल्कि सात समंदर पार से सैलानी भारत के इस अनूठे और अद्भुत मेले की छटा देखने बड़ी संख्या में गंगा किनारे बने पवित्र कुम्भ नगरी खिंचे चले आते हैं। गंगोत्री की पर्वतीय श्रंखलाओं से जो शीतल और श्वेत जल प्रवाह फूटता है, उसका दर्शन संगम के रूप में देव प्रयाग में होता है, जहां पर अलकनंदा और भागीरथी मिल कर मां गंगा के स्वरूप में अपनी यात्रा आरम्भ करती हैं और कोलाहल करती हुई हरिद्वार पहुंचती हैं।



अर्द्ध कुम्भ में अखाड़ों की भव्यता, नागाओं के दर्शन और संत-महात्माओं के प्रवचन आदि की कमी कहीं न कहीं अधूरेपन का एहसास भी कराती है। लीलाओं का मंचन हो या फिर भजन कीर्तन की अमृत वर्षा हरिद्वार के अर्द्ध कुम्भ परिसर में नजर नहीं आयी। जैसे-जैसे अर्द्ध कुम्भ के प्रथम स्नान पर्व का दिन नजदीक आ रहा था, वैसे-वैसे देश के हर प्रान्त से भक्त हरिद्वार पहुंचने लगेथे। 14 जनवरी के पहले स्नान पर्व के बाद हालांकि अपेक्षाकृत भीड़ नहीं रही, लेकिन अर्द्ध कुम्भ मेले की भव्यता बरकरार रही। कुम्भ मेले के दौरान श्रद्धालु अपने पूर्वजों का श्राद्ध करने के अलावा मुंडन भी कराते हैं। घाटों पर गंगा मैया के जयकारे लगाते लोग क्या बूढ़े-क्या नौजवान सब मिलकर जब भक्ति भाव से शीतल स्वच्छ गंगा की धारा में डुबकी लगाते हैं तो बरबस उनके मुंह से हर-हर गंगे की कर्णप्रिय स्वरलहरी निकल पड़ती है। हरिद्वार में आकर तीर्थयात्री कल-कल कर श्वेत प्रवाही गंगा मैया के जल में डुबकी लगा कर मोक्ष की कामना करते हैं।



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