कोविड़ 19 के चलते हासिये पर आयी अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए वित्तीय प्रबन्धन में तात्कालिक सोल्यूशन हो सकती हैं डाकघर बचत योजनाएं


शि.वा.ब्यूरो, प्रयागराज। कोविड़ 19 के चलते हासिये पर आयी अर्थव्यवस्था के कारण वित्तीय प्रबन्धन की जितनी माथापच्ची की जरूरत होनी चाहिए थी, शायद उससे भी अधिक की जा रही है। वित्तीय प्रबन्धन के लिए जहां सरकारी कर्मचारियों के भत्ते प्रभावित हुए हैं, वहीं निर्वाचित माननीय की विकास निधि पर ग्रहण लगा है। ऐसे समय में डाकघर बचत योजनाएं प्रदेश के वित्तीय प्रबन्धन में तात्कालिक सोल्यूशन हो सकती हैं।



उत्तर प्रदेश की अर्थव्यवस्था, भारत की दूसरी सबसे बड़ी राज्य अर्थव्यवस्था है। 2011 की जनगणना रिपोर्ट के अनुसार उत्तर प्रदेश की 22.3 प्रतिशत आबादी शहरी है। राज्य में दस लाख से अधिक आबादी वाले 7 शहर हैं। तेंदुलकर समिति के अनुसार 2011-12 में उत्तर प्रदेश की 29.43 प्रतिशत आबादी गरीब थी, जबकि रंगराजन समिति ने राज्य में इसी अवधि के लिए यूपी में 39.8 प्रतिशत गरीब होने की जानकारी दी थी। हालांकि यूपी सरकार वित्तीय अनुशासन का पालन कर रही है और सरकारी खजाने के पहरेदारी अपर मुख्य सचिव के रूप में एक बेहद काबिल अफसर संजीव कुमार मित्तल बेहद कुशलता के साथ कर रहे हैं। उन्होंने कोरोना महामारी के दौरान जिस कुशलता का परिचय देते हुए विभिन्न आर्थिक योजनाओं के लिए तत्परता से बजट जारी किया और वित्तीय प्रबन्धन को बेहतर करने के लिए कठोर फैसले लिये वे सराहनीय हैं। 



बता दें कि प्रदेश की अर्थव्यवस्था में जहां स्टाम्प एवं रजिस्ट्रेशन, जीएसटी व एक्साईज टैक्स का महत्वपूर्ण रोल है, वहीं प्रदेश एवं राष्ट्र के आर्थिक विकास व समृद्धि के लिए आर्थिक संसाधन जुटाने एवं मुद्रास्फीति के नियंत्रण में राष्ट्रीय बचत योजनाओं की अहम् भूमिका है। इन योजनाओं के जरिये जहां अभिकर्ता के रूप में धन संग्रहण के माध्यम से बेरोजगार महिला-पुरूषों को रोजगार उपलब्ध होता है, वहीं परम्परागत नीति के अनुसार राज्य में शुद्ध जमा के सापेक्ष विकास योजनाओं के संचालन के लिए 100 प्रतिधन धन दीर्घकालीन ट्टण के रूप में सम्बन्धित राज्य को प्राप्त हो जाता है। राष्ट्रीय बचत योजनायें पूर्णतः केन्द्र सरकार की योजनाएं है, जो सुरक्षित विनियोजन, आकर्षक ब्याज, आयकर से छूट, धन निकासी की सुविधा, नामांकन की सुविधा, स्थानान्तरण की सुविधा, अभिकर्ता सेवा की सुलभता आदि की दृष्टि से अन्य बैंकिंग योजनाओं की तुलना में अधिक उपयोगी हैं। ये योजनाएं समाज के सभी वर्गों की आवश्यकताओं के अनुरूप बनायी गयी हैं, जो सभी डाकघरों व अधिकृत बैंकों में संचालित हैं।



अतीत पर नजर डालें तो डाकघर बचत योजनाएं आर्थिक संकट के दौरान कई बार संकटमोचक साबित हो चुकी हैं, लेकिन समय के साथ प्रदेश में इन योजनाओं की प्रासंगिकता कम होती गयी, जिसके चलते इन्हें संचालित करने वाला राष्ट्रीय बचत विभाग नेपथ्य में चला गया। आज हालत ये है कि इस विभाग का एक-एक अफसर एक से अधिक मण्ड़ल का कार्यभार सम्भालने के साथ ही कई-कई जनपदों का अतिरिक्त दायित्व सम्भाल रहा है। इतना ही नहीं प्रचार-प्रसार के मूल स्वभाव वाले इस विभाग में बचत योजनाओं के प्रचार के लिए न कोई मैन पाॅवर है और न कोई अन्य संसाधन हैं। सुखद है कि इस विभाग के मुखिया खुद संजीव कुमार मित्तल ही हैं और निश्चित रूप से इसके लिए कोई अनुपम कार्ययोजना इनके जहन में अवश्य होगी, जिसका वे बेहतर उपयोग समय आने पर किया जायेगा।