डॉ ममता भाटिया, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
बड़े दिनों के बाद मिली है ये दारू, ये दारू। हुई महंगी बहुत ही शराब की थोड़ी-थोड़ी पिया करो, नशा शराब में होता तो नाचती बोतल। प्याला, साकी, मयखाना, मदिरा, जाम, लाल परी, मदिरालय। पिछले दो दिन से सिर्फ यही शब्द सोशल मीडिया, टेलीविजन इत्यादि के माध्यम से कानों में गूंज रहे थे। निश्चित तौर पर यह हमारे मन को लुभा रहे थे, हमारे अंतर्मन को तसल्ली दे रहे थे कि देश का मिजाज बदल रहा है, जिंदगी अब शायद पटरी पर लौट रही है। निस्संदेह हम इन खबरों का लगातार आनंद लेते रहते अगर सभी व्यवस्थाएं व्यवस्थित रहती तो।
करोना महा त्रासदी है, इसका उपचार संभव नहीं, यह निराशा और अंदेशे का दौर है, मानव जिंदगी अंधकार में है, विश्वास और आस्था डगमगा रहे हैं, इस दौर में लाकडाउन के तीसरे चरण में सरकारों ने मदिरालय खोलकर अपनी कमाई का थमा पहिया तो घुमा लिया, लेकिन कई प्रश्नों को भी खड़ा कर दिया। बड़ा प्रश्न है कि क्या मानव जीवन की रक्षा राष्ट्र के लिए बड़ा दायित्व है या अर्थव्यवस्था को बचाना सर्वोपरि है, या यूं कहें की क्या सरकार के लिए राजस्व कमाना जान से ज्यादा प्यारा हो गया ?
देश में राष्ट्रव्यापी लोक डाउन जारी है, इसके खत्म होने की संभावना कम है, इसने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बेचैनी बढ़ा दी है। कोरोना का कहर, लोगों के स्वास्थ्य क्षेत्रों के अलावा कहीं दिखाई दे रहा है तो वह है अर्थव्यवस्था। इन हालातों ने अर्थव्यवस्था के पहियों को जाम कर दिया है, पहले से ही सुस्ती का शिकार भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए आने वाले दिन और कठिन हो सकते हैं। ऐसी लड़खड़ाती अर्थव्यवस्था पर कोरोना के दुष्परिणामों से बाहर निकलने की मांग लगातार तेज हो रही है, लाकडाउन से बाहर निकलने की मांग तेज हो रही है। लाकडाउन खोलने की मांग तेज होने के पीछे एक ठोस वजह जीविका के साधन की भी है। संशय है कि कहीं लाकडाउन जीविका के साधनों को इतना पंगु ना कर दे कि हम करोना के युद्ध से तो जीत जाए पर भूख से जीवन की रक्षा न कर पाएं।
ऐसे सँशयो में प्रधानमंत्री की मुख्यमंत्रियों के साथ बातचीत में आर्थिक मुद्दों और अर्थव्यवस्थाओं को लेकर विशेष चर्चा होना स्वाभाविक है। इस चर्चा के आधार पर अर्थव्यवस्था को गति देने के उपायों पर विचार किया गया। लॉक डाउन से बाहर निकलने पर चर्चा हुई क्योंकि सरकार के लिए कोरोना संक्रमण को रोकने के साथ-साथ बजट की भी चुनौतियाँ हैं। उपचारों के लिए हजारों करोड रुपए का प्रबंध, साथ ही लॉकडाउन /क्वॉरेंटाइन पर भी करोड़ों रुपया खर्च करना है। यह व्यवस्था चलाने के लिए प्रतिमाह साडे 12 हजार करोड़ रूपये वेतन व पेंशन बांटना है। अब शराब की बिक्री या आबकारी से राज्यों को बड़ा राजस्व मिलता है। करीब ढाई लाख करोड़ रुपए का राजस्व मायने रखता है ( ऑल इंडिया ब्लॉगर्स एसोसिएशन के डायरेक्टर जनरल शोभन रॉय के अनुसार) और प्रतिदिन का लगभग 100 करोड़ का राजस्व। यही वजह है कि सरकार ने लोक डाउन के बीच शराब की बिक्री की अनुमति दे दी, ताकि अर्थव्यवस्था को और अधिक क्षति ना हो और वह अपने खर्चों का निर्वहन कर सकें, परंतु अर्थव्यवस्था को उबारने के लिए और प्रतिदिन 100 करोड़ का राजस्व प्राप्त करने के लिए हमने अपनी जान जाम पर लगा दी। हम भूल गए कि जान है तो जहान है, हम भूल गए कि जान है तो जाम है। हमने जान के ऊपर जाम को रख रखा। हमारे सुप्रीमो का जान है तो जहान का पैमाना गड़बड़ा गया। करोना संक्रमण से बचाव के लिए प्रधानमंत्री द्वारा सात सिद्धांतों को अपनाने की अपील पर भी शराब का नशा हावी हो गया। हर राज्य हर प्रांत ने इन सिद्धांतों की धज्जियां उड़ा दी।
पहला सिद्धांत लोक डाउन की लक्ष्मण रेखा पार ना करना जिसे लांघने की अनुमति हमने खुद ही दी है। अनुशासन रहित भीड़ अजब गजब आदेशों की व्यवस्था बयां कर रही थी।
दूसरा सिद्धांत सोशल डिस्टेंसिंग अंतहीन कतार दिनभर एक बोतल शराब के लिए शारीरिक दूरी और प्रधानमंत्री जी के नारे "दो गज की दूरी बहुत जरूरी की धज्जियां उड़ाते खड़े रहे, जैसे कि उनके हाथ की बोतल उन्हें कोरोना से बचा पाएगी।
तीसरी अपील मास्क का प्रयोग 40 दिन के लोग डाउन के बाद शराब के ठेकों के बाहर लोगों ने ऐसा पर्दा उतारा और माना कि हमारे हाथ अमृत लग गया है, जिससे कोरोना तो हमारा बाल भी बांका नहीं कर सकता।
चौथा सिद्धांत कोरोना योद्धाओं का सम्मान हमारे कोरोना योद्धा पुलिसकर्मियों का सम्मान हमने हर ठेके हर शराब की दुकान पर गिरते हुए ही देखा है ।
पांचवी अपील परिवार जनों की देखरेख शराब की ठेकों के बाहर लगी अनुशासन रहित भीड़ साफ दिखा रही थी कि लोगों को ना अपनी परवाह है ना अपनों की । शराब पीने के बाद आई घरेलु हिंसा की तस्वीरें साफ बयां कर रही थी कि हमें अपनों की कितनी परवाह है।
छठी अपील बुजुर्गों का घर से बाहर ना निकलना शराब की दुकानों के बाहर लगी लंबी कतारों में हम अपने बुजुर्गों को भी देख पा रहे थे।
सातवीं अपील प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत करना: अच्छे खानपान और शराब से कौन सा इम्यून सिस्टम मजबूत होगा।
मनुष्य जीवन को सर्वोपरि रखते हुए, दो चरणों तक सख्ती से पालन करवा कर तीसरे चरण में सरकार भूल गई कि "धन से ऊपर जन है'। मदिरालय खुलवाने का निर्णय पूरी तरह अवयवहारिक रहा और बहुत बड़ी भूल साबित हुआ इसने अदूरदर्शिता का परिचय दिया। सरकार भूल गई रतन टाटा का संदेश कि साल 2020 जीवन बचाने का साल है ना कि लाभ हानि की चिंता करने का उन्होंने सरकार को फिर से याद दिलवाया जान है, तो जहान है ( समाचार पत्रों के अनुसार )। सरकार ने एक और भूल की, कि उसने अपनी जनता से अनुशासन और संयम की उम्मीद की। अनुशासनरहित जनता ने ना केवल सात सूत्री सिद्धांतों की गरिमा को न केवल तार-तार किया, अपितु शासन और प्रशासन की 42 दिनों के लोग डाउन की मेहनत को भी शून्य कर दिया। साथ ही लाक डाउन एवं क्वॉरेंटाइन पर 40 दिन के हुए खर्च पर भी पानी फेर कर अर्थ व्यवस्था को और अधिक हिला दिया। सरकार, शासन और प्रशासन को अब और चौकन्ना रहकर यह समझना होगा कि तबलीगी जमात की तरह यह तलब लगी जमात भी हमेशा नुकसान ही पहुंचाएगी।
विभागाध्यक्ष, पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग (विद्या नॉलेज पार्क मेरठ)
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