हिमाचल, हरियाणा, पंजाब, गोवा, कलकता, केरला आदि अन्य राज्यों की तर्ज पर राज्य खेल फुटबाल का विकास करने की मांग


वीरेन्द्र सिंह रावत, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।

 

देहरादून का पवेलियन फुटबाल ग्राउंड  1939 मे स्थापित हुआ था, जब भारत देश गुलाम था अंग्रेजों का। अंग्रेज विदेश की टीम जर्मनी, इंग्लैंड, फ्रांस आदि विश्व की टीम पवेलियन ग्राउंड मे खेलने आती थी। आजादी के बाद गोरखा ब्रिगेड की टीम देहरादून के गड़ी केंट आर्मी एरिया मे आयी और गोरखा मिलिट्री इंटर कॉलेज मे खिलाड़ी खेलते और पड़ते थे। कलकता से पहले फुटबाल का हब देहरादून था। मोहन बंगाल एफसी, इस्ट बंगाल एफसी आदि भारत की प्रसिद्ध टीम आती थी और पवेलियन ग्राउंड मे भारत का एतिहासिक टूर्नामेंट डूरण्ड कप होता था। 1950 से 1980 तक एक समय था, जब भारतीय टीम मे देहरादून के 7 खिलाड़ी Ist एलवन मे खेलते थे और देहरादून के खिलाडियों का दबदबा था, जिसमें चंद्र सिंह, श्याम थापा, अमर बहादुर, टीका राम, बीर बहादुर, शेर सिंह रावत, भूपेंद्र रावत, राम बहादुर, नर सिंह, कमल प्रसाद आदि भारतीय टीम मे खेलते थे। उस समय 1960 से लेकर 1995 तक ओएनजीसी, आईआईपी, परिवहन विभाग, बिजली विभाग, ऑडीनैस फैक्ट्री, पोस्ट ऑफिस आदि विभाग की टीम होती थी, 4%  स्पोर्ट्स कोटा था। फुटबाल ही फुटबाल होता था पूरे देहरादून और उत्तराखंड मे। 2000 मे जब अलग राज्य  उत्तराखंड बना उत्तर प्रदेश से अलग होकर तो फुटबाल का इतिहास अंधकार मे डूबने लगा।


उत्तराखंड सरकार ने ना इस खेल के ऊपर ध्यान दिया और जो आका बने फुटबाल के उन्होंने केवल कुर्सी पकड़ के रखी। विकास के नाम पर जीरो, फिर भी अपने बल बूते उत्तराखंड के खिलाड़ी, जिसमें कमल नैन, मतबर सिंह, कमल रावत, जतिन बिष्ट, मनीष मैथानी, सौरभ रावत आदि ने भारतीय टीम खेल कर देहरादून और उत्तराखंड का नाम रोशन किया। उसके बाद वर्तमान मे जितेन्द्र सिंह बिष्ट, अनिरुद्ध थापा, दीपेन्द्र नेगी, राजा रावत को भारतीय टीम मे खेल रहे हैं। आज भी खिलाड़ी के लिए उत्तराखंड सरकार की कोई पॉलिसी नहीं है। वर्तमान मे ये स्थिति है कि कोई भी सुध लेने को तैयार नहीं है। ये स्थिति हो गयी है कि 40 क्लब दो हिस्सों मे बट गया है और स्टेट एसोसिएशन भी शांत बैठी हुई है। नुकसान केवल खिलाड़ियों का हो रहा है, खेलने के बाद उनको पता नहीं है कि कहा जाना हैं। अनिश्चितता के कारण उनका झुकाव नशे की तरफ हो रहा है और आज का खिलाड़ी बर्बाद हो रहा है। राज्य खेल फुटबाल की बुरी हालत है। आज लिखते हुए दुख हो रहा है कि उत्तराखंड सरकार राज्य खेल को गर्त मे पहुचा रही है। 40 के खिलाड़ियों का भविष्य अंधकार मे है। उत्तराखंड के 13 जिलों मे हर युवा फुटबॉल खेल रहा है, लेकिन उसे उचित मार्ग दर्शन नहीं मिल रहा है। सरकार से अनुरोध है कि हिमाचल, हरियाणा, पंजाब, गोवा, कलकता, केरला आदि अन्य राज्यों की तरह खेलों पर शीघ्र विचार करे और राज्य खेल फुटबाल का विकास करे।

 

पूर्व राष्ट्रीय खिलाड़ी, वर्तमान राष्ट्रीय कोच और क्लास वन रेफरी 

5 अंतराष्ट्रीय, 21 राष्ट्रीय और 19 स्टेट अवार्ड से सम्मानित

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