सही फ़िल्टर क्या हो सकता है


आशीष Kr. उमराव "पटेल", शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।


बचपन से लेकर अकादमिक और सार्वजनिक जीवन के विमर्श में सदैव ये सुनने और पढ़ने को मिल जाता है कि शिक्षा का सही उद्देश्य क्या है? आज सोशल मीडिया के युग में जहाँ तथ्यों की भरमार है लेकिन ये तथ्य सही हैं या गलत, इसका सटीक फिल्टर हमारे पास मौजूद नहीं है। प्रतिदिन हमारे आपके वॉट्सएप्प में ऐसे सैकड़ों मैसेज आते है जिसकी प्रामाणिकता संदिग्ध होती है। लेकिन फिर भी हम उसे फॉरवर्ड करने में हिचकिचाते नहीं है। 
अब प्रश्न उठता है कि सही फ़िल्टर क्या हो सकता है? इसके लिए हमें एक बहुत आसान सा फ़िल्टर अपनाना है जिसे कोई भी सामान्य बुद्धि वाला अपना सकता है इसके लिए पीएचडी की जरूरत नही है। इसके लिए हमें सिर्फ यही करना है कि हमेशा जब कभी भी किसी अख़बार, मैगज़ीन, व्यक्ति, पुस्तक, फिल्म और भाषण आदि को पढ़े देखे, सुने तो यह ध्यान देना है कि वो व्यक्ति, समाज एवं देश को जोड़ रही है या तोड़ रही हैं।
इसके वृहद रूप में आतंकवाद, नक्सलवाद, अलगाववाद, चरमपंथ, सम्प्रदायवाद आदि देश को तोड़ने वाली ताकतों द्वारा घटिया स्तर के व्यक्तित्व एवं  साहित्य को बढ़ावा देने की वजह से है। हमें हमेशा अपने बच्चों को अच्छी पुस्तकें और अच्छे लोगों के संपर्क में रहने के लिए प्रेरित करना है। तभी हम एक सुन्दर भविष्य और विकसित भारत के निर्माण में सहायक सिद्ध हो सकते है।
डायरेक्टर गुरु द्रोणाचार्य आईआईटी-जेईई, नीट & डिफेन्स (NDA & CDS) अकादमी, फाउंडर-डॉक्टर्स अकादमी अखिल भारतीय कुर्मी क्षत्रिय महासभा सहारनपुर मंडल


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