पत्रकार का अपने चैनल के सम्पादक के नाम खुला पत्र (शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र के वर्ष 13, अंक संख्या-22, 24 दिसम्बर 2016 में प्रकाशित लेख का पुनः प्रकाशन)


हे संपादक जी!
गंभीर संकट है। इस देश में सरकार का मतलब लोकतंत्र है, मोदी समर्थन का मतलब राष्ट्रधर्म है, दलित-मुस्लिम समर्थन का मतलब प्रगतिशीलता- धर्मनिरपेक्षता है।
सर! आप तो आप, कांग्रेस, बीजेपी, सपा, बसपा व आरपीआई के समर्थन में तो उतर जाते हैं, हम कहां जाएं? आपका मन हो नाग-नागिन चलाएं, हम प्यादों को बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना बनवा दें, हाथी का मनोचिकित्सक ढूंढ लाने पर लगा दें, फिर जब जी भर आये तो टीवी पर बैठकर बड़ी परिचर्चा में उतर आएं, हमारा क्या सर? डेढ़ दशक हो गये सर, जब पढ़ाई की तो यही पढ़ा था कनफिल्क्ट में ३ जात, धर्म की पहचान ना करें, लेकिन सर पता नहीं बलात्कार के बाद आगे दलित लिखने से मामला कैसे ज्यादा संजीदा हो जाता है। क्या बलात्कार अपने आप में जघन्य नहीं है?
सर अभी महाराष्ट्र में निर्भया जैसा अपराध हुआ है, ये बिटिया छोटे से जिले अहमदनगर की थी लोग पूछ रहे हैं, क्या उसके नाम के आगे जात लिखोगे। सर हम क्या जवाब दें कृप्या बता दें?
सर! कुछ दिनों पहले पुणे में एक दलित युवक को 4 आरोपियों ने मार डाला, मोबाइल पर रिकॉर्ड अपने आखिरी पलों में उसने कहा कि उससे आरोपियों ने धर्म पूछा, जवाब मिला तो पेट्रोल छिड़कर आग लगा दी। सर यहां भी आरोपियों के धर्म को बताने के लिये हमसे सवाल पूछे गये।  सर हम क्या जवाब दें कृप्या बता दें? तकलीफ है सर, हम चांदी के चम्मच वाले पत्रकार नहीं हैं। स्थितियां कभी बनेंगी भी नहीं हम औसत हैं, लेकिन ये बता दें सर अपनी तटस्था का क्या करें? सर! जब शिवसेना जैसे हिंदूवादी ‘जो कम से कम खुलकर अपना परिचय देते हैं’ उनकी हिंसा को हम गुंडागर्दी कहते हैं, फिर फिजूल की तोड़-फोड़ अंबेडकर-पेरियार के नाम पर हो तो उसे हम क्या कहें, प्रगतिशीलता?
सर! कन्हैया जब मुंबई आकर एनसीपी में कई आरोपों से घिरे जीतेन्द्र आव्हाड के करोड़ी कार में घूमे फिर भी उसे हम क्या माने वामपंथी? जब हमारे सामने सबूत हों, कि अंबेडकर भवन ट्रस्ट और परिवार के झगड़े का नतीजा हो फिर भी हम क्या करें सरकार को कठघरे में खड़ा कर दें, सर! जवाब दें, सवाल हमारी तटस्था का है।


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