मृदुल कूक


मुकेश कुमार ऋषि वर्मा, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।


तुम कूक उठी
मृदुल-मृदुल
ये गान तुम्हारा अमर रहे।
प्रेमीजन सुन कूक तुम्हारी मगन रहे।।


तुम काली-काली
रुप न देखा जग
स्वर उतर जाये उर।
जैसे प्रेमी की हूक अमर।।


स्वच्छ गगन तले
घने पातों के बीच छिपे
कंठ तुम्हारा अमृत बर्षाये।
गा-गाकर अमर गान स्वयं ही हर्षाये।।


कोकिल प्यारी
श्याम छवि न्यारी
गूँज रही बागों में ध्वनि तुम्हारी।
तुम गाओ नित-नित, हम सुनेंगे मृदुल कूक तुम्हारी।।


ग्राम रिहावली, डाक तारौली गूजर, 

फतेहाबाद, आगरा 283111

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