उमा ठाकुर, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
जिंदगी की दौड़ में बाद मुद्दत
अपने घर से मुलाकात हुई है
अनजान दीवारों के घरौंदे में
अपनों से पहचान हुई है
संकट के इस दौर में
मशीनी कलख मौन पड़ा है
है मानव बंद पिंजरे में
प्राकृतिक संगीत गूँज रहा है
बुहान शहर से आया दानव
माँ भारती को लील रहा है
हर आम खास मिलकर आज
'रूककर' रेस यह देखो जीत रहा है
जैविक जंग का अदृश्य शत्रु
जन संकल्प के आगे कहाँ टिक पाएगा
डटे लाखों योद्धा यहाँ ढाल बनकर
उसे जल्द यह भान हो जाएगा
होंगे जश्न शंखनाद भी होंगे
छट जाएँगे गमों के बादल
उम्मीदों का दामन थामे
मानवता की जयकार भी होगी
बस तुम कुछ दिन और रूके रहो दहलीज के अंदर
तभी तो करोना योद्धा
जनता कर्फ्यू से दानवदल पर विजयगाथा
पीढ़ियों को सुना पाएगा।
आयुष साहित्य सदन, पंथाघाटी, शिमला
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