नित्यनाथ तिवारी स्वामी जीवन-आमीन, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
ज्योत्सना सिक्त
नीले महाकाश के नीचे
मैने तुम्हें देखा है एकान्त बहुत एकान्त।
तुम्हारी निर्झर सी मुक्त हँसी
बिखरे हुए केशों की राशि
और चमकती हुयी पारदर्शी आँखें
एक गहरे मौन को तोड़ देती हैं।
लगता है तुम मुझे
युगों से जानती हो पहचानती हो
मेरी नियति को
जिसमें लम्बी-लम्बी दरारें पड़ गई हैं।।
नदी के किनारे
बियाबान जंगल में
मेरे भीतर का चट्टान
पिघलने लगा है
एक घने सन्नाटे से
घिरा हुआ
में और तुम
जैसे प्रश्न और उत्तर
एक बिन्दु में समाहित हो गये हों
मेरे भीतर की चेतना में
तुम एक बहती हुयी नदी हो।।
ओशो ध्यान केन्द्र 41/548-49 गंगा देई लेन, नरही लखनऊ