नोटबंदी बनाम नसबंदी (शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र के वर्ष 13, अंक संख्या-20, 10 दिसम्बर 2016 में प्रकाशित लेख का पुनः प्रकाशन)


सुनील वर्मा, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।


देश को जनता तो चाय की पत्ती में उबल चुकी हैं, अब बारी शायद उन लोगो की हैं जिनके बैंक से लेकर टूयूटर तक के खाते हैक हो रहे हैं। 2000 करोड़ का हिसाब नही तो-मोदी -मोदी....
अर्थशास्त्र गणितशास्त्र से भी ज्यादा गूढ़ विषय हैं, जिसे समझना भी अपने आप में एक महाभारत से कम नही है।  वामपंथियों के सहयोग से 2004 में गठित असली नकली गांधीयो की सरकार के 10 वर्षीय लूट-के शासन के कारण आज देश की जनता परेशान है। इन सालों में भ्रष्टाचार खूब फला-फूला,सरकार की नीति-फैसले भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गए। गरीब-अमीर की खाई सुरसा का मुंह बन गई। बढ़ती असमानता पर लिपा-पोती होती रही।  मनमोहनसिंह के अर्थ-शास्त्र की एक बानगी देखिए वर्ष 2004 में देश की कुल आबादी का 37.2 हिस्सा गरीबी रेखा से नीचे था। वर्ष 2009-10 में यह आंकड़ा 29.8 फीसदी हो गया.यानि देश में 7 प्रतिशत आबादी गरीबी से उभर गई, परन्तु यह मनमोहन अर्थ-शास्त्र का भ्रम-जाल था। उन दिनों मोंटेक सिंह अहलुवालिया योजना आयोग के उपाध्यक्ष थे।  दोनों ने कलाकारी दिखाई, शहरी क्षेत्र में 28 रूपये 65 पैसे, गाँव में 22 रूपये 42 पैसे रोजाना कमाने वाले को गरीबी का पैमाना तय कर दिया। अलबता 2004-05में यह कमाई 32 रूपये थी।  4 रूपये के खेल से यह बड़ा फर्क आया। सरकार ने गरीबी नही गरीब कम कर दिए, ताकि कम से लोगो को सुविधा सहायता मुहैया करवानी पड़े। दस सालो में मंहगाई, रूपये के अवमूल्यन 32 रूपये करदेश को गर्त में पहुंचा दिया। यह है मनमोहन सिंह का भ्रष्टाचार से सना अर्थ-शास्त्र और अब अगर मैं ये कहु कि इस सरकार के वित्तमंत्री/प्रधान मंत्री की नोट बंदी के बाद इन गरीबो कि स्थिति कोढ़ में खाज वाली होने जा रही हैं, तो कोई अतिश्योक्ति बिलकुल नही होगी, क्योकि अभी तक कोई भी फेसबुक अर्थ शास्त्री दो बातें सही तरीके से नही समझा पाया। एक तो ये कि इस देश में सिर्फ 1.62 करोड़ लोग ही इनकम टैक्स देते है। इसका मतलब है कि बाकि 124 करोड़ लोगो की इनकम 2.5 लाख (टैक्स फ्री स्लैब) की रेंज में है। ’अब ये समझ में नहीं आ रहा है कि इन सभी 124 करोड़ लोगो को जिनकी कर योग्य आय सालाना 2.5 लाख या 4800 प्रति सप्ताह है। उनको 4000 रुपये से ज्यादा रूपये एक सप्ताह में क्यों चाहिए...??
दूसरी बात नोटबंदी से बैंकों का और भविष्य में आम आदमी को इस से क्या फायदा होने जा रहा है, क्योंकि बैंकों में जो पैसा जमा हुआ है, वो अबतक कुल राशि लगभग छह लाख करोड़ है। ये छह लाख करोड़ पांच सौ और एक हजार नोट के हैं, जिसकी आज की तारीख में कोई अधिकारिक मूल्य नहीं है, क्योंकि ये आज की तारीख में (Illegal Tender) अमान्य मुद्रा है और अमान्य मुद्रा पर ब्याज नहीं दिया जा सकता है। बैंक को इस अमान्य मुद्रा का क्या फायदा होगा? क्या सरकार को अपनी गलती का एहसास अब हो रहा है, इसलिए अब वो इस क्षतिपूर्ति से निबटने के लिए कालाधन को पचास प्रतिशत टैक्स के बाद सफेद घोषित करने का फार्मूला इसी दिशा में एक कदम हैं? क्या सरकार अपने ही इस निर्णय से फंस नही चुकी है और अब ना वो back हो सकती है और ना आगे का सफर कर सकती हैं। क्या सरकार का आने वाला कदम बेहद खतरनाक नही है?


RBI ने बैंको को ब्याज उपलब्ध कराने से इन्कार कर दिया है। बैंक भी इस अमान्य मुद्रा को कहीं Invest  नहीं कर सकते, इसलिए उनका income source block हो चुका है। बैंकों में रखी अमान्य मुद्रा जब तक मान्य मुद्रा में तब्दील ना हो जाए, तब तक यह राशि कागज का टुकड़ा मात्र है। वहीं मान्य मुद्रा की आपूर्ति की रफ्तार इतनी धीरे है कि इससे खाता धारकों को ही पैसा नहीं दिया जा रहा है। सब कुछ सामान्य स्थिति में आने पर कम से कम अट्ठारह महीने लग सकते हैं, तब तक बैंकों और सरकार को लगभग चार से पांच लाख करोड़ की हानि हो चुकी होगी। जबकि इस नोटबंदी से आर्थिक विशेषज्ञों को कोई फायदा नहीं नजर आने वाला। सरकार बेहद दुविधा में फंस चुकी है। वो ना बैंकों को होने वाले नुकसान से उभार पाएगी, ना ही वो आम आदमी को भविष्य में कोई फायदा पहुँचा पाएगी। इन सारी परिस्थितियाँ को देखते हुऐ लगता हैं कि एक और ड्रामेबाजी के साथ जनवरी में ही ये पुराने नोट फिर से आपके बटुऐ की शोभा बढ़ाने वाले है।.


वरिष्ठ पत्रकार खतौली, मुजफ्फरनगर उत्तर प्रदेश


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