मेरा शिमला टूर


हवलेश कुमार पटेल, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।



जनवरी 2020 का वो दिन, जब मैं अपनी पत्नी मनोरमा, बेटी अदिती व भांजी जया के साथ दिल्ली अम्बाला इंटरसिटी रेलगाड़ी से अपने घर खतौली लौटने के लिए अपनी सीट पर बैठा तो सहसा ही शिमला टूर की एक-एक बात चलचित्र की तरह जहन में घूमने लगी।
दिल्ली पीजी में रहकर प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रही मेरी बड़ी बेटी हिमानी स्कूल टाइम से ही इच्छा होते हुए भी परिस्थितिवश कहीं भी घूमने नहीं जा सकी थी। इस बार उसने दृढ़ता के साथ न्यू ईयर पर शिमला की बर्फबारी देखने की प्रबल इच्छा जाहिर की थी। उम्र के साथ जवान होती इच्छाओं का सम्मान करते हुए जैसे ही मैंने सहमति जताई तो मानो पूरे घर में जैसे उत्साह का समुद्र लहरे मारने लगा। तुरत-फुरत में शिमला आने-जाने, रहने और घूमने के साधनों व जगहों की सर्चिंग शुरू हो गयी। इसके लिए मैंने सबसे पहले हिमाचल के जिला शिमला स्थित कुमारसैन निवासी परिचित हितेन्द्र शर्मा से सम्पर्क साधा और उनसे शिमला में ठहरने, खाने-पीने घुमने व आवागमन के साधनों के बारे में चर्चा की तो हितेन्द्र शर्मा ने अपने परिचित ट्रांसपोटर से बात करके उसका मोबाइल नम्बर उपलब्ध करा दिया। इससे पूर्व श्री शर्मा ने हमारा पूरा परिचय व स्वयं से हमारा सम्बन्ध स्पष्ट करते हुए उक्त ट्रांसपोटर से उचित पैसे में उचित व्यवस्था करने का अनुरोध कर दिया था।



हितेन्द्र शर्मा से बात हो चुकने के बाद उक्त ट्रांसपोटर ने मुझे फोन किया और हमारे दो दिन के कार्यक्रम के अनुसार ही हम चार लोगों के होटल में ठहरने खाने-पीने और कालका से शिमला ले जाने और फिर शिमला से कालका रेलवे टाईम के अनुसार छोड़ने व दो दिनों तक आसपास के दर्शनीय स्थल ;साइट सीनद्ध दिखाने के लिए एक इनोवा कार उपलब्ध कराने की ऐवज में बाईस हजार के पैकेज की बात बतायी। टूर और पैकेज पर लगभग सभी की सहमति बन गयी थी, लेकिन इश्क और मुश्क छुपाये नहीं छुपते की तर्ज पर शिमला जाने की खुशी बच्चों से हजम नहीं हो रही थी। उन्होंने इस बारे में दिल्ली निवासी अपने छोटी मौसी अर्चना और बड़े मौसा प्रवीन कुमार को शिमला टूर की जानकारी देते हुए उनसे साथ चलने का आग्रह कर ही दिया। शिमला जाने केे लिए छोटे व बड़े साढ़ू के परिवारों का कार्यक्रम बनने के कारण न्यू ईयर पर शिमला जाने के कार्यक्रम को स्थगित करना पड़ा, क्योंकि सभी लोगों के लिए न्यू ईयर पर शिमला में ठहरने का इंतजाम होना मुश्किल था। इसके अलावा रेलगाड़ियों में भारी रश होने के कारण सभी का रिर्जवेशन भी सम्भव नहीं था। इसके बाद अगली तारीखों को तय करने की जद्दोजहद शुरू हो गयी। इस बात पर मंथन शुरू हो गया कि कार्यक्रम कब और कैसे बनाया जाये। इस बीच प्रवीन कुमार के छोटे भाई व उसकी पत्नी सहित भांजे ने भी शिमला जाने की इच्छा व्यक्त कर दी। अब मेरी सलाह पर मेरी छोटी बेटी अदिती ने सबसे पहले शिमला में ठहरने के लिए इंटरनेट के जरिए स्थान की सर्चिंग शुरू की। काफी कोशिशों के बाद वहां जैन धर्मशाला का चुनाव किया गया और वहां फोन करके जगह की उपलब्धता के बारे में पूरी जानकारी प्राप्त की। इसके बाद शिमला आने-जाने के साधनों के बारे में मंथन शुरू हुआ, इसमें प्रवीन कुमार का अनुभव काम आया और उन्होंने सभी विकल्प टटोलने के बाद हिमालय क्विन ट्रेन में कालका तक जाने व उसी ट्रेन से ही वापिस कालका से दिल्ली आना तय किया गया। चूंकि ट्रेन में बैठने के लिए सीट का ही रिजर्वेशन सुविधा थी, इसलिए सभी ने यह तय किया कि इसी ट्रेन ही कालका तक जायेंगे और इसी से ही कालका से दिल्ली तक आयेंगे। यह तय किया गया कि सीटों का रिजर्वेशन कराने से पहले शिमला में ठहरने की व्यवस्था किया जाना उचित होगा, क्योंकि यदि ठहरने की व्यवस्था पहले से मुकम्मल नहीं होने के कारण शिमला पहुंचकर ठहरने के लिए परेशानी हो सकती थी।



सम्भावित असुविधा से बचने के लिए अब वहां ठहरने के लिए व्यवस्था करने के लिए इंटरनेट पर सर्चिंग शुरू हुई, तभी मेरी नजर श्री दिगम्बर जैन धर्मशाला व अग्रवाल धर्मशाला के लिंक पर नजर पड़ी। मैंने दोनो लिंक अदिती को उपलब्ध कराते हुए उचित व्यवस्था की जिम्मेदारी उसे ही सौंप दी। दो-तीन दिन तक माथापच्ची करने के बाद उसने तारीख तय करके 200 रूपया प्रति व्यक्ति प्रतिदिन के हिसाब से श्री दिगम्बर जैन धर्मशाला में 3 व 4 जनवरी 2020 के लिए दो फैमिली डीलक्स रूप बुक कराकर अपने मौसा प्रवीन कुमार से ऑनलाईन पैमेंट भी करा दिया। अब इसके बाद प्रवीन कुमार ने हिमालय क्विन में रिजर्वेशन कराना आरम्भ किया तो पता चला कि शिमला जाने वालों की संख्या बढ़कर 15 हो गयी है। खैर इस बारे मे जब श्री दिगम्बर जैन धर्मशाला से बात की गयी तो उन्होंने सभी के ठहरने की व्यवस्था कराने के लिए हामी भर ली। इसके बाद प्रवीन कुमार ने 15 लोगों का जाने व आने के लिए रिजर्वेशन करा दिया। यह जानकर सभी को हर्ष हुआ कि मात्र 120 रूपया प्रति व्यक्ति रिजर्वेशन कालका तक जाने व इतना ही खर्च कालका से दिल्ली वापिस आने के लिए हुआ था। ट्रेन को दिल्ली के सराय रोहिल्ला से सुबह पांच बजे छुटना था, इसलिए तय किया गया कि हम लोग खतौली से एक दिन पहले शाम को ही दिल्ली पहुंच जायेंगे और वहां से सब लोग सुविधानुसार सुबह साढ़े चार बजे तक सराय रोहिल्ला पहुंच जायेंगे।



हमने दो जनवरी को खतौली से ऋषिकेश-दिल्ली पैसेंजर ट्रेन से दिल्ली जाने का फैसला किया और नियत तिथि पर मैं, मेरी पत्नी और छोटी बेटी अदिति दिल्ली जाने के लिए ट्रेन में सवार हो गये। मेरठ सिटी स्टेशन पर जया भी मिल गयी। हम चारों देर सांय दिल्ली पहुंच गये। वहीं पर कार्यक्रम की सूत्रधार दिल्ली में प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रही बड़ी बेटी हिमानी भी सीताराम बाजार में मिल गयी। तय हुआ कि दिल्ली में घरों में पर्याप्त स्थान न होने के कारण हिमानी, अदिती और जया अपनी छोटी मौसी अर्चना कश्यप और मैं व मेरी पत्नी प्रवीन कुमार के यहां ठहरेंगे। दोनों घरों के बीच मामूली फासला था। उसी के अनुसार यह भी तय किया गया कि सभी लोग अपने मोबाइल में 4 बजे सुबह का अलार्म लगाकर सोयेंगे और जिसकी आंख भी पहले खुलेगी, वह फोन करके दूसरों को भी जगा देगा और सभी लोग निकट ही स्थित हमदर्द पर एकत्रित होंगे, वहां से टैम्पो या उपलब्ध साधनों द्वारा सराय रोहिल्ला पहुंचेंगे। खैर शिमला जाने की खुशी में सभी लोग समय से ही उठकर तैयार हो गये, हालांकि सभी लोग देर रात लगभग एक बजे तक आपस में बाते करते रहे तो मेजबान सुबह सफर की तैयारी करने में लगे रहे। अभी सोये हुए कुछ ही समय बीता था कि लगभग 3 बजे हिमानी का फोन आया और तुरन्त तैयार होने फरमान सुना दिया। फिर क्या था, सभी लोग जाग गये और नित्यकर्म से फारिग होने व सफर की तैयारी में जुट गये और तैयार होकर सभी ने हमदर्द की ओर प्रस्थान किया।



हमदर्द पर पहुंचकर शिमला जाने वाली टीम के सदस्य पहली बार एक-दूसरे के मुखातिब हुए, जिसमें मैं हवलेश कुमार पटेल, मेरी पत्नी मनोरमा पटेल, मेरी बड़ी बेटी हिमानी, छोटी बेटी अदिति, भांजी जया, बड़े साढू प्रवीन कुमार, उनकी पत्नी अंजना, उनकी बेटी सौम्या, बेटा आयुष, उनका छोटा भाई-भाभी अंकित व टिंकू, उनका भांजा हार्दिक, छोटे साढू नवीन कुमार, उनकी पत्नी अर्चना व बेटा आर्यन शामिल थे। हमदर्द से जिसको, जो भी साधन मिला लगभग तीन टुकड़ियों में सराय रोहिल्ला रेलवे स्टेशन पर पहुंच गये और फिर सभी लोग एक साथ थे। जब हम सभी लोग प्लेटफार्म पर पहुंचे तो हमारी ट्रेन नहीं  थी, क्योंकि हम समय से काफी पहले ही वहां पहुंच गये थे। खैर हिमालयन क्विन अपने निर्धारित समय से प्लेटफार्म पर आयी और हम लोग अपने कूपे में चढ़कर अपनी-अपनी सीटों पर काबिज गये। अपने निर्धारित समय पर ट्रेन सीटी मारी और रेंगती हुई अपने गंतव्य की ओर चल पड़ी और इसी के साथ शुरू हुआ हमारा शिमला टूर।


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