अमर सिंह पटेल, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
होलिका भली थी या बुरी यह तो मैं नहीं जानता, लेकिन पढ़ लिखकर इतना जरूर समझ गया हूं कि होली किसी स्त्री को जिन्दा जलाकर जश्न मनाने की सांकेतिक पुनरावृत्ति है। अभी तक मेरे मन में उठे इस प्रश्न का जवाब मैं नहीं पा सका कि रात्रिकाल में क्यों किसी स्त्री को जलाया गया? जबकि ब्राह्मणी संस्कृति में रात्रि में शवदाह की परम्परा नहीं है। होलिका का दोष क्या था? होलिका को किसने जलाया?’ क्या होलिका को जलाते समय उसके परिजन वहाँ मौजूद थे?
अब मैं उस त्योहार के लिए आप सबको कैसे बधाई एवं शुभकामनाएँ दूँ, जिस त्योहार में किसी स्त्री को जलाया गया हो। जो होलिका दहन करता है, क्या वह स्वयं अपने अंदर की बुराई को जला पाया है? यदि नहीं, तो उसे किसी दूसरे आदमी या औरत को जलाने का अधिकार किसने दिया? कोई मेरे विचार से सहमत हो, यह जरुरी नहीं।
पूर्व अध्यक्ष उ0प्र0 सचिवालय अपर निजी सचिव संघ