महासुवी लोक संस्कृति पर प्रकाशित उमा ठाकुर की पुस्तक की समीक्षा

मनमोहन शर्मा,  शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।

 

उमा ठाकुर की महासुवी लोक संस्कृति पर प्रकाशित पुस्तक, जिसका विमोचन 6 जनवरी 2020 को विश्व पुस्तक मेला दिल्ली में हुआ था। उसकी एक प्रति प्राप्त करने का मुझे भी सौभाग्य प्राप्त हुआ। लगभग 10 वर्ष के अथक शोध कार्य के उपरांत समाज के लिए ऐसे समय में, जब वर्तमान पीढ़ी अपनी लोक संस्कृति, मंत्र रूपी बोली व विभिन्न संस्कारोंं के अवसर पर गाए जाने वाले गीतों, सामाजिक परंपराओं को डी जे की धुन और पाश्चात्य संस्कृति की ओर अनावश्यक रूप से आकर्षित होकर तीव्र गति से भूलाती जा रही है, उनका यह प्रयास निश्चित तौर अपनी संस्कृति को सुदृढ़ करने के लिए कारगर सिद्ध होगा।

चिंता का विषय है कि चाईनीज व्यंजनों की दुकानें दिन प्रतिदिन छोटे-छोटे शहरों की हर गली में भी धड़ाधड़ खुल रही है। स्पष्ट है कि माँ के हाथ से बने पारंपरिक पौष्टिक आहार से नई पीढ़ी दूर होती जा रही है। ऐसे में वर्तमान समाज के सुस्वास्थ्य की कल्पना करना व्यर्थ है। शायद इसी चिंता को लेकर पुस्तक के दसवें अध्याय में उमा ठाकुर ने विभिन्न पारंपरिक पकवानों को तैयार करने की विधि को विस्तारपूर्वक समझाने का प्रयास किया है। उम्मीद है उनका यह प्रयास हमारी लोक संस्कृति और समाज के बिगड़ते स्वास्थ्य का संरक्षण करने में बहुत ही मददगार सिद्ध होगा। 

 

समीक्षक व कवि कोष लेखा एवं लॉटरी विभाग कसुंपटी शिमला

                         

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