जाने कहाँ


मनमोहन शर्मा, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।

 

जब से धरा पर कोविद हो गया

जाने कहाँ ? गोविंद सो गया

हर ओर है कालिया फन फैलाए

भय से थर थर मन रो गया ।

 

जब से धरा पर कोविद हो गया।

 

शहर की गलियाँ सुनसान हो गई

बिन भंवरे बसंत वीरान हो गई

फिजाओं की महक पाने को

अतीत के पलों में मन खो गया।

 

जब से धरा पर कोविद हो गया।

 

पायल की कहीं झंकार नहीं

बसंत में महकती बहार नहीं

जाने जन्नत सी इस धरा पर

कौन ? बीज काँटों के बो गया।

 

जब से धरा पर कोविद हो गया

जाने कहाँ ? गोविंद सो गया

हर ओर है कालिया फन फैलाए

भय से थर थर मन रो गया ।

 

   कुसुम्पटी शिमला-9

Post a Comment

Previous Post Next Post