डॉ. शैलेश शुक्ला, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
पुरानी कहावत है—"कर्म ही पूजा है"।लेकिन जब कर्म करने से ज्यादा फल ‘कृपा’ से मिलने लगे, तो पूजा की दिशा बदलनी पड़ती है।अब अगर यह ‘कृपा’ किसी बॉस, नेता, रिश्तेदार या कॉलोनी की आरडब्ल्यूए की हो, तो समझ लीजिए कि आप चापलूसी रूपी अद्वितीय कौशल के प्रथम पायदान पर चढ़ चुके हैं।इसीलिए आधुनिक युग के नौकरीपेशा महापुरुषों ने आत्मज्ञान प्राप्त कर लिया है कि डिग्री, मेहनत, टैलेंट और ट्रांसफरेबल स्किल्स सब धरे रह जाएँ, यदि चापलूसी कला में निपुण न हुए।यही कारण है कि आज हर संस्था, हर दफ्तर, हर परिवार और हर चुनावी मंच पर एक ही नारा गूंजता है— "चापलूसी सर्वश्रेष्ठ कौशल अस्ति"।
बॉस की जय-जयकार : छुट्टियों से लेकर विदेश यात्राओं तक का राजमार्ग : सुबह ऑफिस पहुँचते ही अगर आप 'गुड मॉर्निंग' कहने के साथ बॉस की नई नेहरू जैकेट की तारीफ करें, तो आपके नाम के आगे स्मार्ट एम्प्लॉयी ऑफ द मंथ लगना तय है। अगर आपने उनकी पावरपॉइंट प्रेज़ेंटेशन को 'टेड टॉक से बेहतर' बता दिया, तो समझिए एक और बोनस आपके अकाउंट में घुसने को मचल रहा है। और यदि बॉस की कविताओं पर आपने यह कह दिया कि "सर, गुलज़ार साहब भी जल उठें", तो सालाना इन्क्रीमेंट की चिंता किसे! इतना ही नहीं, आप ‘अनौपचारिक’ विदेशी टूर के लिए भी चुने जा सकते हैं, बशर्ते आपने फ्लाइट टिकट से पहले उनके पालतू डॉग की भी तारीफ कर दी हो।
हर मीटिंग में उनकी बातों पर सिर न हिलाएँ तो क्या हिलाएँ? और अगर गलती से किसी और के चाय लाने पर भी आपने "सर, आपकी पसंद की चाय लाजवाब है" कह दिया, तो उस दिन से आप बॉस के 'विश्वासपात्र' माने जाते हैं। याद रखें, बॉस को खुश रखने के लिए KPIs नहीं, KPY—Keep Praising Yourboss—ज्यादा जरूरी है। "चापलूसी सर्वश्रेष्ठ कौशल अस्ति"।
बॉस के बॉस की चरण-वंदना : प्रमोशन का फास्ट ट्रैक : एक आम कर्मचारी की सीमाएं बॉस तक ही होती हैं, परंतु असली चापलूस वह होता है जो ‘बॉस के बॉस’ तक पहुंच बना ले। जैसे ही आपको यह आभास हो जाए कि बॉस के ऊपर भी एक बॉस है, वहीं से चापलूसी का असली पावर प्ले शुरू होता है। उनके आने से पहले चाय मँगवा दीजिए, बैठक में उनकी पसंद की कुर्सी सजा दीजिए और अगर उनका बेटा IIT की तैयारी कर रहा है, तो "सर, वो तो टॉपर ही बनेगा!" कहकर उनकी छाती चौड़ी कर दीजिए।
उनके जन्मदिन पर फूल नहीं, उनके कुत्ते के लिए पेडिग्री लेकर जाइए। अगर ‘मेमसाहब’ कोई कविता लिख रही हों, तो उसके लिए भी तालियाँ बजाइए, भले ही वह कविता गद्य की हत्या हो। बस इतना कर दीजिए, फिर देखिए कैसे प्रमोशन की रॉकेट पर आपकी सवारी होती है। कल तक जो मीटिंग में कुर्सी ढूंढता था, आज वही कुर्सियों का इनचार्ज हो जाता है। और फिर, जब आप भी बॉस बन जाते हैं, तो आप खुद अपनी चापलूसी सुनने का लाइसेंस हासिल कर लेते हैं। "चापलूसी सर्वश्रेष्ठ कौशल अस्ति"।
पड़ोसी बनाम पुरस्कार : गाड़ी धोने से लेकर शादी का कार्ड छापने तक का सौदा : अब आप सोचेंगे कि चापलूसी केवल दफ्तर की चीज़ है, तो यह भारी भूल होगी। मोहल्ले में यदि आपने शर्मा जी के बेटे को हर सुबह “ये लड़का तो देश का भविष्य है” कहकर स्कूल भेजा, तो दो महीने बाद वही शर्मा जी आपके लिए सोसाइटी पार्किंग में दो जगह रिजर्व करा देंगे। यदि किसी पड़ोसी के घर से आवाज़ आई—“भाई साहब, एक मिनट”—तो आप बोलिए “आपके लिए तो पूरा दिन खाली है”, फिर देखिए, अगले नवरात्रों में वही पड़ोसी आपको माइक पकड़ा देंगे कि 'आप ही भजन शुरू करिए'। और अगर किसी के बेटे की शादी में आपने DJ पर भी उनके गमले की तारीफ कर दी, तो बारात में सबसे आगे डांस करते हुए ही उनके ड्राइवर से कहेंगे, “भैया, अगली बार मुझे भी बुला लेना।” मोहल्ले में जो सबसे ज़्यादा ‘प्लेट’ खाता है, वो वही होता है जो सबसे ज़्यादा ‘प्रशंसा’ करता है। और इसी तरह, पड़ोसी के घर की बालकनी से लेकर कॉलोनी की कोर कमेटी तक आपकी धमक बनी रहती है। "चापलूसी सर्वश्रेष्ठ कौशल अस्ति"।
रिश्तेदारों की रहनुमाई : मायके से ममेरे बहनोई तक का लाभ : रिश्तेदारों की चापलूसी में ‘गुणा’ से ज्यादा ‘गुणगान’ काम आता है। शादी में अगर आपने चाची को 'आपके बाल तो बिल्कुल मधुबाला जैसे हैं' कह दिया, तो वह आपको बर्थडे गिफ्ट देने को मजबूर हो जाती हैं। मामा के बेटे को 'आपके जैसी आंखें मैंने किसी हीरो में नहीं देखीं' बोलिए और देखिए कैसे उनकी नौकरी का इंटरव्यू आपके कहने से 'लगवाने लायक' हो जाता है। ससुराल में यदि आपने सास की बनाई खिचड़ी को 'पाक-कला की मिसाल' बताया, तो वो सास कुछ दिनों में कार की चाबी पकड़ा देंगी कि 'बेटा, घूम आओ बहू को लेकर'।
भाई-बहन के बच्चों की अंधाधुंध तारीफ करते जाइए और देखिए कैसे हर त्यौहार पर आपको बिजली बिल छूटाने वाले नंबर भेजे जाते हैं। रिश्तेदारों की चापलूसी से त्योहारों में सूखे लड्डू नहीं, घी टपकते रसगुल्ले मिलते हैं। एक जमाना था जब संबंध खून से बनते थे, अब संबंध 'गुणगान' से बनते हैं। "चापलूसी सर्वश्रेष्ठ कौशल अस्ति"।
राजनीति और नेता-महिमा : 'नेता जी' कहो, 'नेत्रत्व' पाओ : राजनीति में ‘मत’ से ज्यादा महत्व ‘मतिभ्रम’ का होता है और चापलूसी इस मतिभ्रम की सबसे उम्दा औषधि है। अगर आप किसी नेता जी को देखकर यह कह दें कि "आपके आने से क्षेत्र में रामराज्य आ गया है", तो अगली सभा में आपकी कुर्सी मंच के ठीक पीछे होगी—जिसे अब 'बैकस्टेज' नहीं, बैक-पावर जोन कहा जाता है। अगर आप उनकी जर्सी की डिजाइन पर यह कह दें कि "सर, यह रंग तो आपको मुख्यमंत्री बना देगा", तो उनकी पार्टी की पोस्टर टीम में आपका नाम ‘क्रिएटिव एडवाइजर’ के रूप में जोड़ दिया जाएगा। नेताओं की चापलूसी का सर्वोच्च रूप होता है—उनकी अनुपस्थिति में भी उनकी उपस्थिति का बखान। जैसे : "नेता जी यहाँ नहीं हैं, पर उनकी सोच यहाँ तक फैली हुई है।" इतना कहने के बाद अगर आप गले में माला पहन लें, तो समझ लीजिए पंचायत से लेकर पालिका तक आप ‘नॉमिनेट’ हो सकते हैं। चापलूसी का जादू राजनीति में इतना गहरा है कि एक सामान्य व्यक्ति भी नेता जी का ड्राइवर बनकर 'संजय' हो जाता है, जो 'धृतराष्ट्र' को दुनिया दिखा रहा है।
भाषणों में बार-बार कहना "हमारे प्रेरणास्रोत नेता जी"—यह नहीं देखा जाता कि प्रेरणा कैसी है, बस यह देखा जाता है कि आपके वाक्यों में 'नेता जी' कितनी बार आ रहे हैं। और हां, यदि उनकी पत्नी NGO चलाती हैं, तो उस पर टिप्पणी करना मत भूलिए—"मैम, आपकी समाजसेवा, मदर टेरेसा भी देखती तो चकित रह जातीं।" "चापलूसी सर्वश्रेष्ठ कौशल अस्ति"।
संतानों के सुनहरे भविष्य की चाभी : ‘डैडी’ की चापलूसी और ‘मम्मी’ की मुस्कान : चापलूसी अगर एक निवेश है, तो उसकी सबसे लाभकारी एफडी है—अपनी संतानों की नौकरियों का बंदोबस्त। आपको बस इतना करना है कि अपने बॉस के सामने यह जता दें कि आपका बेटा 'सर की तरह' बनना चाहता है। और अगर आपने यह जोड़ दिया कि "सर, मेरे बेटे ने भी आपके जैसे ही IIT-JEE छोड़कर UPSC की तैयारी शुरू की है", तो समझिए—आपने इंटरव्यू से पहले ही रिज्यूमे मंजूर करवा लिया।
बॉस की पत्नी के जन्मदिन पर अगर आपका बच्चा ‘मैम को हैप्पी बर्थडे’ कहने वाला पहला व्हाट्सएप भेज दे, तो नौकरी नहीं तो कम-से-कम इंटर्नशिप तो पक्की है। यही नहीं, स्कूल में किसी और के बेटे को ‘सुपरस्टार’ कहने से पहले अपने बेटे को ‘नए अब्दुल कलाम’ घोषित कर दीजिए। बाकी सब समाज अपने-आप समझ जाता है कि "यह बच्चा किसी बड़े आदमी का बच्चा है।" अब यह मान लीजिए कि नौकरी मिल भी जाए, तो उसके बाद जो क्लाइंबिंग द कॉर्पोरेट लैडर वाला जोक चलता है, उसमें लैडर नहीं, लैदर चाहिए—ऐसा जूता जिससे आप बॉस की तारीफ पर फिसलते चले जाएं। "चापलूसी सर्वश्रेष्ठ कौशल अस्ति"।
फोटो विद बॉस : 'ब्लेस्ड', 'लर्निंग फ्रॉम द बेस्ट' जैसे हैशटैग से लेकर प्रमोशन तक : सामाजिक प्रतिष्ठा का मापदंड अब सेल्फी से तय होता है। यदि आपके इंस्टाग्राम या फेसबुक पर 'With Boss' वाली दो–तीन फोटो हैं, तो HR विभाग आपको 'Dedicated Resource' मानता है। और यदि फोटो में आपने ‘सर के कंधे के नजदीक’ जगह बना ली है, तो समझिए अब आप केवल कर्मचारी नहीं, परिवार का हिस्सा हैं। यह संस्कृति इतनी समर्पित है कि ऑफिस की किसी भी मीटिंग, पिकनिक या सेमिनार में लोग ‘खाने’ से ज्यादा 'बॉस के साथ फ्रेम' में आने के लिए बेताब रहते हैं। कुछ तो पहले से फोटोग्राफर को कह देते हैं—"भाई, जब मैं बॉस को कॉफी दे रहा होऊँ, तभी क्लिक करना।"
इन फोटोज़ का अगला चरण होता है ‘कैप्शन क्रिएटिविटी’—"Always Inspired", "Sir’s Vision = My Mission" और अगर कोई खास दिन हो तो “Blessed to learn under the greatest mentor alive”—अब बॉस की आत्मा भी फेसबुक पर टहल रही हो, तो दिल पिघल ही जाएगा। फोटो का असर इतना गहरा होता है कि सालाना समीक्षा में बॉस कहते हैं—“ये लड़का मेरे साथ हर मोर्चे पर दिखता है”—चाहे मोर्चा हॉल में हो या फोटोशॉप में! "चापलूसी सर्वश्रेष्ठ कौशल अस्ति"।
सार्वजनिक कार्यक्रमों में 'अग्रिम पंक्ति' का रहस्य : टिकट से नहीं, तिकड़म से आती है सीट : आप चाहे स्कूल के 'डेबेट' में बोलिए या किसी विधायक के शिलान्यास कार्यक्रम में शामिल होइए, सबसे आगे बैठने का सुख ही अलग होता है। पर यह सुख केवल प्रवेश-पत्र से नहीं, प्रवेश-प्रशंसा से प्राप्त होता है। यदि आपने कार्यक्रम के संयोजक को कहा कि "भाईसाहब, आपकी योजना देखकर तो मुझे विवेकानंद याद आ गए", तो आपको 'वीआईपी' एरिया में बैठने के लिए रूमाल भी मिलेगा, पंखा भी।
आप अगर मंच पर 'कुर्सी' नहीं पा सकते, तो मंच के आसपास खड़े होकर ऐसे सिर हिलाइए, मानो बिना आपके प्रतिक्रिया के कार्यक्रम अधूरा रह जाएगा। थोड़ी देर में ही कोई बुलाकर कहेगा—"भाईसाहब, सामने एक कुर्सी खाली है, आ जाइए आप।"
सार्वजनिक मंचों पर दिखाई देना केवल दिखावा नहीं, रणनीति है। जब एक ही तस्वीर में आप नेता जी के साथ, बॉस के बगल में और संयोजक के पीछे दिखें—तो यह किसी डिग्री से कम नहीं। आजकल लोग LinkedIn स्किल्स से ज्यादा Live Pics से पहचाने जाते हैं। "चापलूसी सर्वश्रेष्ठ कौशल अस्ति"।
सोशल मीडिया चापलूसी : ‘ब्लू टिक’ का रास्ता, ब्राउज़र से नहीं, बटरिंग से जाता है : डिजिटल युग ने चापलूसी को भी ‘अपग्रेडेड वर्ज़न’ में ला खड़ा किया है। अब चापलूसी सिर्फ ज़बानी जमाखर्च नहीं, डिजिटल भक्ति का प्रमाणपत्र है। आप जैसे ही ट्विटर (अब X) या इंस्टाग्राम पर किसी मंत्री, अभिनेता, लेखक या अधिकारी की हर पोस्ट पर "अद्भुत", "युगपुरुष", "आपकी कलम अमर है", "आपका दर्शन युगदृष्टा है" जैसे शब्दों का प्रयोग करते हैं, वैसे ही आप ‘डिजिटल दरबार’ के दरबारी मान लिए जाते हैं।
सोशल मीडिया पर चापलूसी का एल्गोरिदम सीधा है : जितनी ज़्यादा बार आप तारीफ करें, उतनी जल्दी आपके 'टैग' नोटिस किए जाते हैं। यदि आपने किसी अधिकारी की बर्थडे पोस्ट पर चार कविताएं, दो पुराने फोटो और एक “ईश्वर आपको लंबी उम्र दे, ताकि हम आपकी कृपा पाते रहें” जैसी लाइनें चिपका दीं, तो वे आपको या तो फॉलोबैक करेंगे या अपॉइंटमेंट स्लिप भेजेंगे।
यूट्यूब में किसी ‘पॉलिटिकल लीडर’ की स्पीच के नीचे अगर आप यह लिख दें—"भगवान राम और गांधी का समागम आपके विचारों में है", तो समझिए अगली जनसभा में आपको मंच का कोना अवश्य मिलेगा। और फेसबुक पर यदि आपने यह लिख दिया—"आज जो कुछ भी सीखा, वह सिर्फ आपको देखकर सीखा", तो वह व्यक्ति आपको दिल से नहीं तो कम से कम ‘रील’ से जरूर प्यार करने लगेगा।
डिजिटल दौर में चापलूसी इतना विशाल हो चुका है कि अब लोग फ्रीलांसर चापलूस भी रख लेते हैं—जो दिनभर कमेंट बॉक्स में मिठास घोलते रहते हैं। इनमें से कुछ को सरकारी योजनाओं की प्रचार सामग्री में भी ‘तटस्थ विशेषज्ञ’ की जगह मिल जाती है। "चापलूसी सर्वश्रेष्ठ कौशल अस्ति"।
धार्मिक चापलूसी : ‘सेवा भाव’ और ‘सेवाभावना’ में फर्क समझिए : कई लोग सोचते हैं कि भक्ति सिर्फ ईश्वर की होनी चाहिए, परंतु चतुर जन जानते हैं कि धर्मगुरु की भक्ति में जो लाभ है, वह स्वर्ग के दरवाजे से बड़ा है। अगर आप किसी बाबा जी के चरणों में जाकर दिन में तीन बार झुकें, उनके प्रवचनों को "जीवन बदल देने वाला ज्ञान" बताएं और हर वाक्य के बाद “बोलो सतगुरु महाराज की जय” दोहराएं—तो जल्दी ही आपको उनके आश्रम का लोकल कोऑर्डिनेटर बना दिया जाएगा।
अगर आपकी 'सेवा' में थोड़ा कौशल है—जैसे माइक ठीक से पकड़ना, हार पहनाना, या ‘हां में हां’ मिलाना—तो आपको आश्रम के गुप्त लाभ भी मिलने लगते हैं : मुफ्त प्रवास, संतों की संगति और कभी-कभी किसी योजना में अनुशंसा पत्र तक। और यदि आपने बाबा जी की कुटिया की दीवारों पर "गुरु जी अमर रहें" की रंगोली बनाई, तो समझिए अगली बार जब राजनेता उनके दर्शन को आएंगे, तो आपके नाम का उल्लेख गुरु जी स्वयं करेंगे—“हमारे भक्त फलाने जी, जो दिल से सेवा करते हैं।”
धार्मिक चापलूसी का विस्तार इतना बड़ा है कि इसमें लोग 'मोक्ष' तो बाद में, 'मान्यता' पहले पा जाते हैं। यह चापलूसी धर्म, सत्ता और समाज के त्रिकोण में सबसे सुरक्षित निवेश बन चुका है। "चापलूसी सर्वश्रेष्ठ कौशल अस्ति"।
निष्कर्ष : चापलूसी, एक बहुआयामी नीति, जो करियर से लेकर ‘करियर के बाद’ तक साथ देती है : जिस देश में 'जुगाड़' को जीवन कला माना जाता है, वहाँ ‘चापलूसी’ को राष्ट्रकला मान लेने में कोई संकोच नहीं होना चाहिए। यह वह कौशल है जिसे कोई विश्वविद्यालय नहीं सिखाता, परंतु हर सफल व्यक्ति इसे आत्मसात करता है। यह 'मुलायम ज्ञान' (soft skill) नहीं, गाढ़ा लाभ है। यह हर पद, हर वर्ग, हर संस्था, हर संबंध में फिट बैठता है—बॉस हो या बहनोई, MLA हो या मामी, हर कोई इसकी मधुरता से पिघलता है।
चापलूसी में कोई जाति, धर्म, भाषा, लिंग या पेशे का भेदभाव नहीं। यह पूरी तरह समावेशी कला है। यह प्रधानमंत्री से लेकर पानवाले तक पर लागू होती है। यह पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित की जाने वाली विरासत है—दादा जी ने पटवारी की चापलूसी की, पिता जी ने प्रधानाचार्य की और हम बॉस की कर रहे हैं। यही निरंतरता चापलूसी को पारिवारिक मूल्य बनाती है।
इस युग में, जब हर व्यक्ति 'स्किल डेवलपमेंट' की दौड़ में लगा है—कोई डिजिटल मार्केटिंग सीख रहा है, कोई कोडिंग, कोई डेटा एनालिटिक्स—तो हम सजग जनों को चाहिए कि हम यह स्वीकारें कि चापलूसी ही एकमात्र स्थायी स्किल है। बाकी सब तो प्रोजेक्ट आधारित होते हैं, पर चापलूसी एक End to End Process है। तो अब, जब अगली बार कोई पूछे—“आपकी सबसे बड़ी ताकत क्या है?” तो पूरे आत्मविश्वास से कहिए— "चापलूसी सर्वश्रेष्ठ कौशल अस्ति।"