होरी कैसे खेलूं रे




ए के खतौलवी, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।

 

मेरा मनवा बड़ा उदास होरी कैसे खेलूं रे,

देश के अच्छे नहीं हालात होरी कैसे खेलूं रे,

राजधानी में कुछ लोगों ने कैसा आतंक मचाया,

किसी का मारा लाल किसी की लूटी माया,

आंकड़ा हुआ पचास के पार, मैं होरी कैसे खेलूं रे...

 

बिन मौसम बरसात हुई तो मच गया हाहाकार,

फसलें सारी नष्ट हो गई कृषक हुआ लाचार,

कैसे चलेगा अब घर बार होरी कैसे खेलूं रे...

 

बेरोज़गारी ने युवकों की ऐसी तैसी करदी,

मुश्किल हुआ गुजारा करना हालत कैसी करदी,

झूठे वादे रोज़ करे सरकार, होरी कैसे खेलूं रे..

 

गुंडागर्दी और महंगाई पार कर रही सीमा,

सभी पदार्थो में है मिलावट जहर खा रहे धीमा,

अब तो जीना हुआ दुश्वार, मै होरी कैसे खेलूं रे..

 

सीमा पर जवान हमारे हक के लिए हैं लड़ते,

लेकिन नेताओं के बच्चे जा विदेश में पढ़ते,

कैसे देश का हो उद्धार, होरी कैसे खेलूं रे...

 

खतौली, (मुजफ्फरनगर) उत्तर प्रदेश

       


 

 



 

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