हिमाचल प्रदेश का वो स्थान जहां गुरु गोरखनाथ जी चौरासी सिद्धो के साथ आए थे







डाॅ• जगदीश शर्मा, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।

 

हिमाचल प्रदेश जिला मण्डी करसोग वाह्य सराज व सतलुज के साथ लगते शिमला क्षॆत्र के बड़ा गाँव आदि के उप-गाँवो का शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति हो जो च्वासी गढ़ से परिचित न हो। समुद्र तल से लगभग 9000 फीट की ऊँचाई पर स्थित च्वासी गढ़ के नामकरण के बारे मे प्रदेश के स्थान नाम व्युत्पत्तिजन्य विवेचनात्मक अध्ययन पुस्तक मे लिखा है कि मण्डी जिला की करसोग तहसील के च्वासीगढ़ के विषय मे कहा जाता है कि किसी समय गुरू गोरखनाथ चौरासी सिद्धो के साथ इस स्थान पर आए थे, इसलिए यह स्थान चौरासी कहलाया जो बाद मे बदल कर च्वासी हो गया है।


अपने धार्मिक महत्व की वजह से यह स्थान सुकेत ही नही अपितु कुल्लू शिमला का भी प्रसिद्ध तीर्थ स्थल रहा है। जे.हचिसन और जे. बोगल ने हिस्ट्र आफ पँजाब हिल स्टेट्ट भाग एक मे सुकेत राज्य मे उग्रसेन के शासन काल मे धूँगल वजीर की कठोरता के कारण इसी गढ़ मे बने किले मेँ बारह दिनों तक वजीर को बँदी बनाने का वर्णन किया है। पहाड़ की चोटी पर बने मँदिर के प्राँगण से दूर-दूर तक का नैसर्गिक प्राकृतिक दृश्य व यहाँ का सुरम्य वातावरण तथा खुशनुमा मौसम ऐसा अनुभव करवाता है जिसकी व्याख्या शब्दों मे नही की जा सकती।च्वासी सिद्ध मँदिर का निर्माण सुकेत सँस्थापक राजा वीर सेन ने किया था।


क्षेत्र के युवा समाज सेवी व युवा कारदार च्वासीगढ़ टी सी ठाकुर जी बताते है कि राजा वीर सेन च्वासी गढ़ के शिखर के मध्य भवन (महल) निर्माण कर किले के मध्य च्वासी सिद्ध के मँदिर की स्थापना की। कालांत मे यह भवन व मँदिर अग्नि की भेँट चढ़ गया। बीसवीं सदी के आरम्भ मे सुकेत शासक ने इस किले का जीर्णोद्धार करवाया, लेकिन यह किला सुकेत शासक के प्रति भड़के भयँकर असँतोष की आँधी के चलते तहस-नहस हो गया। बौद्ध धर्म और गोरखनाथ से जुड़ी घटनाओँ व सुकेत के गौरवशाली अतीत का गवाह च्वासी सिद्ध अपने प्राकृतिक सौँदर्य के कारण पर्यटकों के आकर्षण का भी केन्द्र रहा है।


वरिष्ठ समाज सेवी व संस्कृत मर्मज्ञ पांगणा करसोग, हिमाचल प्रदेश

 






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