बेटियों के लिए समर्पित शशि कान्त पाराशर अनमोल का पूरा जीवन


निक्की शर्मा "रश्मि", शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।

 


जहां महिलाओं, बेटियों के बारे में हम सोच-सोच कर चिंतित रहते हैं, उनकी सुरक्षा के लिए। इस समाज के बिगड़ते हालात को देखते हुए, बेटियों और महिलाओं के साथ होते अत्याचार को देखते हुए सचमुच हमारा दिल दहल जाता है। कुछ घटनाएं ऐसी हुई है जो आज भी हमारे रोएं खड़ा कर देती है। आज भी हमारी आंखों के आगे वो आ जाती हैं, जिसे भूलना नामुमकिन है। महिलाओं और बेटियों की सुरक्षा की बात सभी करते हैं लेकिन एक ऐसे शख्स से मैं मिली, जिन्होंने अपना पूरा जीवन महिलाओं और बेटियों के लिए समर्पित कर दिया है। जिनसे मैं काफी समय से जुड़ी हूं, उनके मन में दिल में महिलाओं और बेटियों के लिए जो भाव है, उससे मैं अनजान नहीं रह सकी। उनकी हर कविता हर लेखनी बेटियों को लेकर थी, जिसे पढ़ते दिल में एक झनझनाहट सी दौड़ जाती थी। महिलाओं और बेटियों के लिए इतना समर्पित मैंने किसी को नहीं देखा। मैंने इनसे फोन पर बात की कुछ सवाल जो मेरे मन में थे, मैंने इनसे पुछा और इन्होंने बहुत ही बेहतर और इत्मीनान से जवाब दिया, जिसे आप सबके समक्ष रख रही हूं। मैं जिस इंसान के बारे में बात कर रही हूं वो "शशि कान्त अनमोल" हैं। ये मथुरा उत्तरप्रदेश के रहने वाले हैं।

जिन्होंने अपना पूरा जीवन महिलाओं और बेटियों के लिए समर्पित कर दिया है और इस कार्य में कोई बाधा ना आए, इसलिए शादी भी नहीं की है। आइए उनके बारे में और कुछ जानते हैं उन्हीं की बातों से ।

मेरे सवालों के साथ उनके जवाब।

सवाल-आपकी प्रेरणा स्तंभ

जबाब- आखिर ! मेरे जीवन में यदि लेखन को लेकर कोई प्रेरणा स्तंभ है तो वो प्यारी सी गुड़िया रानी सिद्धि सुरी है, जिसे देखकर ऐसा महसूस हुआ कि इस लड़की से कोई पहले जन्म का रिश्ता है।

दिन के उजाले में रात के अंधेरे में कोई शख़्स मुझे दिखता है

शायद ! वो लौट के आ रहा है जिससे सदियों पुराना रिश्ता है

कहते हैं कि जिस घर में बेटी होती है वो घर भाग्यशाली होता है, लेकिन इस कथन पर यही कहूंगा कि जिस घर में बेटी हो, उस घर में कभी दरिद्रता, रोग, द्वेष और मुश्किलें कभी नहीं होती हैं, क्योंकि बेटी एक मुस्कान और उसके मुस्कुराते हुए चेहरे से ही सबका निवारण हो जाता है।

मेरी मासूम सी बिटिया खुदा का दीद सिद्धि है

मेरी होली और दीवाली मेरी तो ईंद सिद्धि है।

अपना रहम ओ करम बिटिया पर रखना उम्रभर मालिक

पराया धन नहीं है ये मेरी उम्मीद सिद्धि है।।

सवाल-लेखन के क्षेत्र में अनुभव और मैंने सुना है कि आपने शादी भी नहीं की, इसके बारे में बतायें?

जबाब- निजी जीवन में हम शादीशुदा नहीं हैं, फिर भी बेटियों ओर महिलाओं के लिए लेखन कार्य किया। कई लोगो ने लेखन को लेकर अनेक प्रकार के प्रश्न किए। मेरे पास सबके प्रश्नों का ही एक ही जबाव था कि मैंने बेटी को कभी शब्द नहीं कहकर संबोधित नहीं किया, मैं बेटी को अहसास समझता हूं। एक ऐसा अहसास जिसे सिर्फ़ महसूस किया जा सकता है और शब्दो की भाव मंजरी में संजोया जा सकता है।

वो नाजुक सी कली मां की बाहों में लेटी रहती है

मेरे दिल में महबूबा नहीं, बेटी रहती है

उपरोक्त शेर ही मेरे अंदर लिखने की प्रवृति को जागृत किए हुए है ।

सवाल- महिलाओं और बेटियों के लिए लेखन की प्रेरणा कब और कैसे?

ज़बाब- इस प्रश्न का सीधा संबंध मेरे निजी जीवन से जुड़ा है। जब मैं करीब प्राथमिक शिक्षा ग्रहण कर रहा था, तब अपने घर में एक औरत की मजबूरी, एक बहन की विवशता को देखकर ही मन ही मन अपने विचार आया कि कुछ ऐसा किया जाए, जिससे एक गृहणी घर में रहकर के अपने सपने पूरे कर सके। जो उसकी जिज्ञासा है उसे स्वछंद रूप में जागृत करें। उसके बाद प्राथमिक शिक्षा पूर्ण करने के बाद जनाब  कौसर जावेद जी से शायरी, ग़ज़ल और उर्दू की तालीम हासिल की। जीवन के उतार चढ़ाव को देखने के बाद शुरुआत में रोमांटिक अंदाज में लेखन कार्य किया। उसके बाद जिस वजह से मन में उदासी थी, उस विषय पर कार्य किया। अचानक जिंदगी में ऐसा मोड़ आया कि मेरे मन में बेटियों के प्रति लिखने का ख़्याल आया, क्योंकि ग्वालियर की शान सिद्धि सुरी से सोशल मीडिया पर मुलाकात हुई तो उससे प्रेरित होकर बेटियों के लिए लिखना प्रारंभ कर दिया। आज सिद्धि सुरी के साथ साथ देश की प्रतिभाओं में शामिल अनेक बेटियों को आधार बनाकर अनेक लेख व कविताएं लिख चुका हूं ।

सवाल- सिद्धि-एक उम्मीद महिला साहित्यिक समूह में महिलाओं और बेटियों के क्या विशेष कार्यप्रणाली है ?

जबाब- यह समूह एक साहित्यिक समूह है, जिसके अन्तर्गत देश विदेश की महिलाएं, गृहणियां,  प्रतिभाशाली बेटियां, ख्याति प्राप्त समाज सेविकाएं और विश्व विख्यात लेखिका शामिल हैं। इस समूह को बनाने का उद्देश्य है कि जो महिलाएं व बेटियां अपने हुनर को जन जन तक पहुंचाने में असमर्थ हैं, उनके हुनर को जन-जन तक पहुंचना और उनको एक नई पहचान दिलाने का एक संभव प्रयास है। जिसके अन्तर्गत उन सभी को अन्तर्राष्ट्रीय व राष्ट्रीय स्तर पर उजागर किया जाता है। समूह की तरफ कई सामाजिक संस्थाओं में आर्थिक मदद व उनको मानसिक सुझाव देना हम अपना कर्तव्य समझते हैं। समूह का निर्माण लगभग चार साल पहले ही हो गया था, लेकिन अनेकों प्रयास और सभी महिलाओं जैसे समूह की अध्यक्ष डॉ. नीरजा मेहता समूह की संचालक डॉ. प्रतिभा गर्ग की कड़ी मेहनत से सभी की नज़र में 22 अक्टूबर 2019 को आया, इसलिए हम सभी समूह का स्थापना दिवस 22 अक्टूबर को ही मनाते हैं।

सवाल- समूह के आगामी कार्य ?

जबाब- समूह के द्वारा लिखित व छापंकन पत्रिका सिद्धि कलश मासिक पत्रिका को प्रकाशित कराया जाएगा। समूह की तरफ से उन लड़कियों के लिए आर्थिक सहयोग दिया जाएगा, जो शिक्षा के क्षेत्र में उन्नति करना चाहती हैं। समूह की समस्त सम्मानित महिला सदस्यों की तरफ से किसी की बेटी के विवाह में कन्यादान योजना भी शुरू की जाएगी, जिसके फलस्वरूप उसे कन्यादान के माध्यम से आर्थिक मदद दी जाएगी। उपरोक्त सभी कार्य प्रगति पर हैं ।

सवाल- साहित्यिक परिचय ?

जबाब- नाम- शशि कान्त पाराशर, साहित्यिक उपनाम- अनमोल, मथुरा, उत्तरप्रदेश skparashar7466@gmail.com,  कार्य- शिक्षक, नारी प्रधान लेखक और कवि, शिक्षा- स्नातक ( हिन्दी भाषा ), विधा- छंद मुक्त कविता, शायरी, ग़ज़ल, लघुकथा, कहानी और संस्मरण आदि। प्रकाशन- पत्र-पत्रिकाओं में रचनाओं का प्रकाशन निरंतर जारी है। पुस्तकें व साझा संकलन- घरौदा (बाल विशेषांक), सिद्धि- एक उम्मीद ( एकल काव्य संग्रह), बज़्म ए हिन्द ( साझा संकलन)  [बज़्म ए हिन्द नामक साझा संकलन गीनिज बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में शामिल है।], संस्थापक- सिद्धि- एक उम्मीद महिला साहित्यिक समूह और सिद्धि कलश मासिक पत्रिका, सम्मान- देश की राजधानी दिल्ली से राष्ट्रीय गौरव सम्मान व हिंदी सेवी सम्मान से सम्मानित।


मुम्बई, महाराष्ट्र

           

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