शि.वा.ब्यूरो, मुजफ्फरनगर। अग्रसेन भवन में अग्रभागवत कथा के दूसरे दिन आचार्य विष्णुदास शास्त्री द्वारा अग्रसेन की शिक्षा के बारे में बताया कि उनकी शिक्षा उज्जैन के निकट ’अगर’ नामक स्थान पर ताण्ड्य ऋषि के आश्रम में हुई। महाभारत के युद्ध में महाराजा अग्रसेन ने अपने अतुलनीय शौर्य का प्रदर्शन किया था। भगवान श्रीकृष्ण ने अग्रसेन को उपदेश दिया कि तुम्हारे जीवन का उद्देश्य हिंसा नहीं, अहिंसा है। महाराजा अग्रसेन द्वारा माता महालक्ष्मी की कठोर तपस्या की गई। जिसके फलस्वरूप महालक्ष्मी ने प्रसन्न होकर अग्रवंश की कुलदेवी बनने का महाराजा अग्रसेन को वरदान दिया था। जब तक संसार में अग्रवंश रहेगा, तब तक महालक्ष्मी अग्रवंश की कुलदेवी होगी। कथा वाचक ने कहा कि संकट आने पर जीव को व्याकुल नहीं होना चाहिये, बल्कि सद्गुरू की शरण में जाकर उनके मार्गदर्शन में उर्जावान बनना चाहिये। आपदा, व्याधि एवं संकट की घड़ी में दैवी कृपा से युक्त साहसी व्यक्ति ही कल्याणकारी सिद्ध होता है। आज के समय में कोरोना जैसे वायरस के समाधान के रूप में शुद्ध शाकाहार अपनाने पर बल दिया।
इस अवसर पर ट्रस्ट के अध्यक्ष सत्यप्रकाश मित्तल, मुख्य कथा संयोजक विनोद सिंहल, पुरुषोत्तम सिंहल, योगेंद्र मित्तल, प्रदीप गोयल, श्याम लाल बंसल, तेजराज गुप्ता, संजय गुप्ता, आशुतोष कुच्छल, पवन सिंघल, मित्तसैन अग्रवाल आदि मुख्य रूप से उपस्थित थे। भगवान श्रीकृष्ण द्वारा अग्रसेन को उपदेश एवं अग्रसेन को अग्रवंश की कुलदेवी बनने का वरदान सुन्दर झाँकी द्वारा, जिसमें तेजराज गुप्ता कृष्ण, पवन सिंघल अग्रसेन एवं अलका गुप्ता लक्ष्मी द्वारा प्रस्तुत किया गया। तत्पश्चात आरती एवं प्रसाद का वितरण किया गया।