(कुंवर आर.पी.सिंह), शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
आखिरकार कतर के दोहा में अमेरिका और तालिबान में शान्ति समझौता हो गया। ये वही तालिबान है, जिसे कभी अमेरिका ने अफगानिस्तान से रूसी आधिपत्य को उखाड़ फेंकने के लिए ओसामाबिन लादेन की अगुआई में आगे कर भरपूर समर्थन दिया था। लेकिन रूस को हटाकर अफगान में तख्ता पलट कर तालिबान और लादेन ने वहाँ जो अमानवीय व्यवहार लोगों से किया, वह रुह कँपाने वाला था और पूरी दुनिया के लिए खतरा बन गया था। अफगानिस्तान में बैठे लादेन और तालिबान से हिन्दुस्तान समेत दुनिया के तमाम मुल्क आतंक के साये में आ गये। और अमेरिका पर किये हवाई हमलों ने तो उसे हिला दिया। अमेरिका दंग था, खुद का पाला चेला ,आतंक का खुदा हो गया। उसके बाद अमेरिकी सेना और नाटों देशों के साथ मिलकर अफगान में सीधे घुसकर लादेन, तालिबान, अलकायदा जैसे आतंकी संगठनों के खिलाफ हमला बोल दिया। जो अभी तक जारी था। बहुत हदतक आतंकवाद की कमर भी तोड़ी और लादेन जैसे तमाम दुर्दान्त आतंकियों को मौत के घाट उतार दिया। तथा दुनिया पर छाये आतंक के खौफ़ को कमतर कर दिया।
लेकिन अफगान सरकार इस समझौते की बहुत पक्षधर नहीं थी, दूसरी ओर अमेरिकी शासन और जनता अपने सैनिकों को बहुत दिनों तक वहाँ रखने के पक्ष में नहीं है। इसलिये यह समझौता हुआ है, लेकिन लोग इससे बहुत आशावान नहीं हैं। अफगान में जेल में बन्द 50 हजार आतंकियों की रिहाई और दूसरे मौजूद तमाम विद्रोही गुट सरकार के लिये सिरदर्द हैं, दूसरी ओर नापाक जैसे पड़ोसी देश भी वहाँ अपनी पैठ बनाने के लिए आतंकवाद को फिर हवा दे सकते हैं ,,इसका अंदेशा है।
राष्ट्रीय अध्यक्ष जय शिवा पटेल संघ
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