सरकार के प्रयास ठेंगे पर, रामभरोसे खतौली रेलवे स्टेशन की व्यवस्था


(हवलेश कुमार पटेल), शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।


सरकार हर दिन नई तकनीक का इस्तेमाल करने की नसीहतें अपने अफसरों व कर्मचारियों के देते नहीं थक रही है और न केवल नसीहत, बल्कि हर रोज नई तकनीक मुहैया भी करा रही है, लेकिन अफसर हैं कि हम नहीं बदलेंगे की तर्ज पर फिल्म शोले के उस डायलाॅग को चरितार्थ कर रहे हैं, जिसमें जेलर बने असरानी अपनी जेल में बदं कैदियों से कहते हैं कि इतनी बदलियों के बाद भी हम नहीं बदले तो तुम क्या बदलोगे अ..हा..।



ताजा मामला खतौली रेलवे कर्मचारियों से जुड़ा है। बीते दिवस रेलवे अफसरों की बड़ी लापरवाही उस समय उजागर हुई, जब खुली पटरी पर ट्रेन को कुछ वर्ष पूर्व रेलवे स्टेशन के नजदीक हुई भीषण रेल दुर्घटना को नजरअंदाज करके बेझिझक दौड़ा दिया। इतना ही नहीं जब स्टेशन मास्टर कमलेश कुमार से इस सम्बन्ध में जानकारी चाही तो उन्होंने बेहद रूखे एवं अनमने अंदाज में जवाब दिया कि इस तरह की बाते होते रहना आम बात है, इसमें समाचार जैसा कुछ नहीं है। जबकि जानकारों की मानें तो खुली पटरी पर कई ट्रैन गुजरती रही और पटरी के दोनों और हुक निकल कर ट्रैक पर पड़े रहे। मामले की गम्भीरता को भांपते हुए सूचना पाकर मौके पर पहुचे स्थानीय विधायक विक्रम सैनी ने विभागीय कर्मचारी को जमकर फटकार भी लगाई, जिसके बाद आनन-फानन में कर्मचारी रेलवे की पटरी पर दौड़े और लाईनों को ठीक किया।



विधायक विक्रम सैनी इस बात से अचम्भित थे कि बीते 2 वर्ष पूर्व इसी रेलवे लाइन पर चर्चित उत्कल एक्सप्रेस भीषण हादसा हुआ था और फिर से ऐसे ही किसी हादसे से इंकार नहीं किया जा सकता था, लेकिन रेलवे अफसरों को इसकी भनक तक नहीं।
इसके साथ ही रेलवे स्टेशन तक पहुंचाने वाले रास्ते को लेकर भी लोगों में आक्रोष है। बारिस के बाद अधिकृत रास्ते से स्टेशन पहुंचना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है, क्योंकि रास्ता पूरी तरह गड्ढ़ों में तब्दील हो चुका है और उसमें भरा पानी व कीचड़ कोढ़ में खाज का काम कर रहा है, लेकिन रेलवे अफसरों को अभी तक इस बात का भी पता नहीं है कि यह रास्ता किसके अधिकार में आता है और इसे ठीक कराने की जिम्मेदारी किसकी है।



जब ड्यूटी पर तैनात स्टेशन मास्टर कमलेश कुमार से इस सम्बन्ध में जानकारी की गयी तो उन्होंने दो टूक कहा कि हमें केवल स्टेशन की सीमा के भीतर की जानकारी है, इससे बाहर की कोई जानकारी नहीं है। रेलवे अफसरों के जवाब के बाद यह पूरी तरह स्पष्ट हो गया कि जब अफसरों को यह भी जानकारी नहीं है कि रास्ता किस विभाग के अधिकार में आता है तो इसे ठीक कराने का कोई प्रयास किया गया होगा, यह सोचना भी बेमानी होगा।



रेलवे अफसरों की उदासीनता के चलते रेल से सफर करने वाले यात्री हर रोज रेलवे ट्रैक पार करके कानून का सरेआम उलंघन कर रहे हैं, लेकिन अफसर हैं कि शायद किसी बड़ी दुर्घटना होने का आंख मूंदकर इंतजार कर रहे हैं। विभागीय जानकारों की मानें तो बिना टिकट रेलवे प्लेटफार्म पर घूमना व पटरियों को बिना ओवरब्रिज के पार करना कानूनी जुर्म है, लेकिन नगरवासी इस कानून को अनजाने में ही तोड़ने के लिए मजबूर हैं, रेलवे अफसर हैं कि हो जाने दो जो हो रहा है, बाकी सब हमारे ठेंगे पर।


 


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