(प्रभाकर सिंह), शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
राजेश खन्ना पहले सुपस्टार थे. जिस भी फ़िल्म में काम करते हिट होना तय थी। रोमांटिक हीरो थे। जनता को यही चाहिए था। जनता का मिज़ाज ही इस टाइप का था लिहाज़ा उन्होंने सफ़लता के झंडे गाड़ दिए। उधर देश की राजनीति में बदलाव शुरू हो गए। नए नए आंदोलनो से चीज़े बदलने लगी, लोगो की सोच में बग़ावत के बीज पैदा होने लगे। धीरे-धीरे देश का मिज़ाज ही बदल गया। उन्हें अब ऐसा हीरो चाहिए था जो भ्रष्ट सिस्टम और अमीरों रसूखदारों के विरुद्ध आवाज़ उठा सके। अमिताभ बच्चन ने इसकी कमी को पूरा कर दिया। इससे पहले जब तक जनता का मिज़ाज ऐसा नही था अमिताभ अपनी लगातार सात फिल्मे फ्लॉप दे चुके थे।
इधर राजेश खन्ना फ्लॉप होते गए। सवाल ये है कि सफ़लता क्या है? क्या राजेश खन्ना एक्टिंग ख़राब करने लगे, क्या अब उनकी फिल्मों के गाने बेकार होने लगे। नही ऐसा नही है, बल्कि जनता की सोच बदल गई. राजेश खन्ना अब चाहे टॉप की एक्टिंग कर देते वो नकारे ही जाते।
राजनीति बिल्कुल ऐसी ही है नेता अगर जनता के मिज़ाज का नही है तो कुछ भी कर ले सफलता नही मिलेगी। ये दौर ऐसा है कि जनता को ईमानदारी नही चाहिए। सौहार्द एकता जैसी सोच और सभ्य भाषा नही चाहिए, अपनी गलतियों को स्वीकारने वाला भाव नही चाहिये। जनता को झूठे सपने चाहिए, बड़ी-बड़ी बातें चाहिए, ललकार, दहाड़, फुफकार, बदला चाहिए।
ऐसे में आज के विपक्ष के नेता फिट नही बैठते। इसी फिट न बैठने को आप असफलता से जोड़िए या पप्पू कहिये, कुछ और भी नाम दे दे लेकिन उनकी मेहनत और भाषण में कोई कमी नही है। वाक़ई ये दौर में वो फिट नही बैठ रहे है ये आप हम सभी बाखूबी समझते है। हालांकि जनता की सोच बदलेगी ये प्रकृति का नियम है। फ़र्ज़ी राष्ट्रवाद, धार्मिक कट्टरता, फूहड़ता से मोह भंग होगा।
रिसर्च स्कॉलर इलाहाबाद विश्वविद्यालय