कुव्यवस्थाओं से बना एक नया इतिहास


(आशुतोष), शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।

बाढ़ से तो बिहार हमेशा परेशान रहा है। ऐसा कोई भी वर्ष नही जो यहाँ बाढ़ न आयी हो। आज तक बाढ़ के रोकथाम और उनके स्थायी निराकरण की बात होती रही थी। उसकी योजनाओ के काम और व्यवस्था पर चर्चा होती थी, लेकिन इस बार राजधानी पटना के जल जमाव की भयावह और विकृत स्थिति की चर्चा इतिहास बन गयी। कुव्यवस्थाओं की ऐसी मिशाल कहीं और देखने को नही मिलेगी। राजधानी पटना की 80% आबादी पूरी तरह पानी से त्रस्त है। सूबे में सुशासन की सरकार है और शहरवासी के घरों में नाले का पानी। जल जमाव की यह भयावह रूप तब हुआ है, जबकि सरकार प्रत्येक वर्ष हजारों करोडो रूपये नाले सफाई पर खर्च करती है।


इतिहास गवाह है 1975 के बाद राजधानी पटना में बाढ़ नही आयी थी, आज भी बाढ़ नही आयी है, लेकिन जल निकासी का कुप्रबंधन खुलकर नाकामियों को उजागर कर रहा है। प्रभावित लोगों को पीने का पानी खाना और जरूरी सामान का इंतजाम करना मुश्किल हो गया है। अपने घरो में कैद लोग दाने दाने को मोहताज है। ऐसी विक्राल और रौद्र बारिस तो पहले भी हुई है, लेकिन इतनी भयावह तस्वीर पहले कभी नहीं देखी गयी। अधिकांश मुहल्ला के ग्राउन्ड फ्लोर पिछले दस दिनों तक से डूबे रहे है, लोग दूसरी मंजिल पर रह रहे थे। पीने का पानी और जरूरी राशन जो स्टाॅक थे वो समाप्त हो चुके हैं, जबकि पानी जस की तस बनी हुई रही। सूबे के उपमुख्यमंत्री को रेस्क्यू किया जाना इस बात का परिचायक है कि स्थति कितनी भयावह थी। 

नाले की सफाई और पानी निकासी की उत्तम व्यवस्था ढलान युक्त नाले का निर्माण और प्रबंधन पटना में पुनः करना होगा, ताकि पानी निकल जाय।


दरअसल पहले आबादी का कम बोझ पटना पर था। बढती आबादी और नाले वही साथ ही पालीथीन का ढेर गंदगी का अंबार कब तक नीचे हो चुकी नाले को पानी निकालने देंगे, इसके लिए सरकार के साथ जनता को भी जागरूक होना आवश्यक है।पटना नगर निगम और सरकार को नये स्कीम बनाकर मुहल्ले का पीनी निकासी के लिए ठोस पहल करने की आवश्यकता होगी। सभी नालो की सफाई और उनका विस्तारीकरण आवश्यक है, ताकि ऐसी विकट परिस्थिति की पुनरावृति न हो।

मौसम विभाग ने लगातार ऐसी संभावना व्यक्त की थी, लेकिन प्रबंधकर्ताओं ने इस ओर ध्यान नही दिया कि जल जमाव की परिस्थिति में जल निकासी कैसे सुनिश्चत हो। जो पंप आज मँगाये जा रहे है, वह पहले भी मँगवायी जाती, तो शायद आज इतनी भयावह स्थिति नहीं बनती।

सरकार की जितनी भी योजनायें है, वह आम जन के लिए बनती है और उनकी तकलीफो को दूर करने के लिए होता है।योजनाओं का जमीनी स्तर पर कार्यान्वयन भी सुनिश्चत हो, ऐसी व्यवस्था लानी होगी सिर्फ कागज पर खानापूर्ति कर ली जाय तो ऐसी परिस्थितियाँ आम जन को भोगना पडता है, जिसे प्राकृतिक आपदा की संज्ञा देकर अपनी नैतिक जिम्मेदारियों से छुटकारा प्राप्त करने की मंशा को उजागर करता है। आखिर इन कमजोरियो और जल जमाव की जिम्मेदारी कौन लेगा?उनपर कार्रवाई क्यो नही? जिनकी जिम्मेदारी जल निकासी की थी।


 

पटना बिहार

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