कमलेश तिवारी हत्याकाण्ड़ः बोया पेड बबूल का तो आम कहां से खाये


(प्रभाकर सिंह), शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।


कमलेश तिवारी की हत्या को जायज नही ठहराया जा सकता है, हत्या किसी भी सभ्य समाज का चरित्र नही होता है, इसलिए किसी की भी हत्या निंदनीय है और मैं कमलेश तिवारी की हत्या की भर्त्सना करता हूं और उनके आत्मा के शांति के लिए प्रार्थना करता हूँ। साथ ही साथ भारत के समाज से एक सवाल करता हूं कि कमलेश तिवारी ने समाज को ऐसा क्या दिया कि वह एक ख्याति प्राप्त नेता हो गए। यही न कि उन्होंने एक धर्म विशेष को गाली दी तो हिन्दू समाज ने उन्हें अपना नेता मान लिया, क्या यही है हमारे हिन्दूधर्म का चरित्र और दर्शन कि दूसरे धर्म को गाली दो और नेता बन जाओ ?


क्या एकमात्र इस उपलब्धि के अलावा,कोई अन्य उपलब्धि भी कमलेश तिवारी के नाम दर्ज है ? क्या उन्होंने किसी हिन्दू को सुरक्षित किया ? क्या उन्होंने हिन्दु धर्म का कोई उन्नयन किया ? शायद नही। उन्होंने सिर्फ हिन्दुओ की भावनाओ को भड़काया और उस भावना को भड़काने के लिए उन्होंने हिन्दुधर्म का सहारा लेकर दूसरे धर्म को गाली दी। कमलेश तिवारी का यह कृत्य मेरे हिन्दुधर्म का चरित्र नही है।


दूसरा तथ्य यह भी है कि यह साहब गांधी के हत्यारे गोडसे को पूजते थे और गोडसे का मंदिर बनवाने के लिए दृढ़प्रतिज्ञ थे, यह क्या है ? मतलब यह धर्म के नाम पर एक हिंसक भीड़ तैयार करना चाहते थे, जो गोडसे के पदचिन्हों पर चले, लेकिन अफसोस जब तिवारी जी का गला काटा जा रहा होगा, उन्हें गोली मारी जा रही होगी, तब उन्हें न तो हिन्दू याद आ रहा होगा न गोडसे। निश्चित रूप से उन्हें गांधी याद आ रहे होंगे और इन्हें यह महसूस हो रहा होगा कि यदि हम गांधी का भारत बनाने का प्रयास किये होते और भारत का चरित्र, गांधी के चरित्र अनुरूप बना होता तो शायद उनकी जान बच गयी होती। शायद हत्यारे उनका गला नही रेते होते, शायद उनको गोली नही मारी गयी होती। इसके अतिरिक्त तिवारी जी को कुछ याद आ रहा होगा तो वह रहा होगा कि इस देश की सरकारों ने शायद एक स्ट्रांग सुरक्षा सिस्टम बनाया होता, मजबूत कानून का शासन दिया होता, त्वरित न्याय का दर्शन रहा होता तो भी अपराधियो में भय रहता और अपराधी न तो उनका गला रेतता, न गोली मारता।लेकिन कमलेश तिवारी ने ऐसा कुछ नही किया, जिससे हमारा भारत, गांधी का भारत बन सके, हिंसामुक्त भारत बन सके, विधि के शासन वाला भारत बन सके, एक सभ्य भारत बन सके।
अफसोस तिवारी जी देश के जनमत में सुर्खियां बटोरने के लिए शॉर्टकट रास्ता अपनाया, बहुसंख्यक के सेंटिमेंट की राजनीति की,गोडसे का हिंसक भारत बनाने की कोशिश की और अंततः किसी सिरफिरे गोडसे की गोली का शिकार हो गए। 


अब आते है उस मौलाना पर जिसने कमलेश तिवारी का सरकलम करने की सार्वजनिक उद्द्घोषणा करके, इसने भी धार्मिक सेंटिमेंट की राजनीति करके सुर्खिया बटोरी और इसके भी चाहने वाले,मानने वाले फालोवर तैयार हो गए। अब उनसे यह पूछना है कि क्या वह मौलाना जिस इस्लाम का चरित्र चित्रण किया, क्या वही इस्लाम का चरित्र है ? क्या इस्लाम इतना कमजोर पंथ है कि किसी सिरफिरे व्यक्ति के क्रिटिसाइज करने से, कुरान का एक पन्ना फाड़ देने से खतरे में आ जाता है ?यदि ऐसा है और जो ऐसा मानते है, उन्हें भी अपना मूल्याकन करना चाहिए कि वह धर्म की गलत व्याख्या करके, लकीर के फ़क़ीर होकर जी रहे है और धर्म उन्हें सही रास्ते पर न ले जाकर जड़ता के रास्ते पर ले जाकर उन्हें एक अन्धेरे कुएं में ढकेल रहा है।
दूसरा जो मानते हैं कि इस्लाम का वह चरित्र नही है, जिसे उस मौलाना ने परिभाषित किया, तो फिर सवाल यह है कि ऐसे मौलाना इस्लाम मे बने क्यो हुए है? क्या इस्लाम मे ऐसे व्यक्ति को, जो हिंसा भड़काने की बात करे, उसके लिए इस्लाम मे कोई खारिजा का प्रवन्ध नही है?


फिर उस सरकार से भी सवाल है कि जो व्यक्ति, सार्वजनिक रूप से किसी के कत्ल करने की धमकी दिया, इनाम की घोषणा किया जो कि एक दुष्प्रेरण का अपराध है, फिर भी सरकारी मिशनरी क्या कर रही थी? क्या उस मौलाना को दंडित किया? नही ना, तो क्यो नही किया? यही सियासत है और जब इस सियासत के पन्ने पलटेंगे तो इतना दुर्गंध निकलेगी कि आपको घिन्न आएगी। बस आप उस सियासत के पन्ने को पलटने का साहस नही कर रहे है और सियासत आपको धर्म, जाति, क्षेत्र जैसे भावनात्मक मुद्दों पर शोषण करते हुए भेड़ की तरह हांक रही है।
तो साहब! सियासत का चरित्र समझिए, धर्म को भी तर्क की कसौटी पर कसिए, अन्यथा धर्म ही आपको निगल जाएगा। एक सर्वमान्य तथ्य नोट कर लीजिए। कोई हिन्दू एकता के नारे देकर न तो हिन्दू को सुरक्षित कर सकता है और न ही कोई मुसलमान एकता और इस्लाम के खतरे का आवाहन करके मुस्लिम को सुरक्षित कर सकता है। यदि ऐसा होता तो तबरेज़, पहलू, अखलाख, इंस्पेक्टर सुबोध, कमलेश तिवारी मारे न जाते। इसलिए धर्म को अंतःकरण तक ही सीमित रखिये, उसे वोट के लिए बाजार की विषयवस्तु बनाकर चौराहे पर  खड़ा करें अन्यथा न धर्म रह जायेगा न आप।


साहब एक इंसान बनिये इंसान।  एक स्ट्रांग नागरिक बनिये और जो नेता समाज का भला करने के लिए जातीय, धार्मिक एकता के नारे लेकर आये, उसे बहिष्कृत करे, स्ट्रांग शिक्षा,सुरक्षा,कानून,न्याय,स्वास्थ्य इत्यादि की मांग करे।
रिसर्च स्कॉलर इलाहाबाद विश्वविद्यालय


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