(सतीश शर्मा), शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
दुनिया इक धोखा और कुछ भी नहीं है।
यहां सबकुछ तो है मगर कुछ भी नहीं है।
है वक्त की इक ठोकर पे जो हस्ती तेरी।
फिर तेरी हस्ती भी कोई हस्ती नहीं है।
काम आ सके किसी के तो ये ज़िंदगी है।
वरना ये ज़िंदगी भी कोई ज़िंदगी नहीं है।
ग़ौर करोगे तो जान लोगे तुम भी सतीश।
ये दास्तां सब की है बस इक तेरी नहीं है।
महसूस तो करो इन लफ़्ज़ों को रूह से।
न हो महसूस तो ये कोई शायरी नहीं है।
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